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वे सयाने निकले

लघुकथा

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ज्योति जैन
रिसेप्शन की गहमा-गहमी में उस झुण्ड में वार्तालाप का विषय कुमार थे।

' यार! वो तो बड़े शाणे निकले ! '

' और क्या, सामूहिक विवाह में बेटी को निपटा दिया'

' हाँ, सारा पैसा बचा गए!'

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ये शाणे कुमार साहब वे थे जिन्होंने एकमात्र बेटी का सामूहिक विवाह में कन्यादान किया और विवाह के लिए जमा किए पैसों से बेटी का पूरा घर बसा दिया था। क्योंकि उनका दामाद एक अनाथ और हॉस्टल में रहने वाला एक पढ़ा लिखा होशियार नौजवान था। जो तरक्की की सीढि़याँ चढ़ता जा रहा था।

सचमुच वे शाणें नहीं सयाने निकले।

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