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अतुल केकरे
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किसी बच्चे को कॉमिक्स पढ़ते देख बचपन की याद ताजा हो जाती है। गर्मी की छुट्टियों में मैं भी लायब्रेरी से लाकर कहानियों की किताबें पढ़ा करता था। आज टेलीविजन और इंटरनेट ने बहुत-सी चीजें बदल दी हैं लेकिन घर-घर में दादी-नानी व माँ द्वारा सुनाई जाने वाली कहानियां बच्चे आज भी बड़े चाव से सुनते हैं। मेरा बेटा रोज रात अपनी माँ से कहानियां सुनता है, बगैर कहानी सुने उसे नींद नहीं आती। परीकथाएं उसे विशेष प्रिय हैं।

एक सुबह मैं अखबार पढ़ रहा था उसने आकर कहा-'बाबा आज रात सपने में मैंने जलपरी को तालाब से निकलते देखा।' मैंने हूँ करके उसकी बात अनसुनी कर दी। कुछ दिनों बाद उसने कहा 'बाबा मैंने जलपरी को सड़क पर चलते देखा।' मैंने अच्छा कहकर फिर उसे टाल दिया। चंद दिनों बाद उसने कहा- 'बाबा आज सपने में मैंने जलपरी को भटकते देखा वह काफी थकी और परेशान लग रही थी।' आज उसके स्वर से खुशी नदारद थी, चेहरे पर पीड़ा के भाव थे।

मैं कुछ प्रतिक्रिया देता उसके पहले उसने पूछा- 'बाबा जलपरी तो पानी में रहती है फिर वह धरती पर क्यों भटक रही थी?' उसका प्रश्न सुनकर मैं क्षणभर के लिए चकरा गया। उसकी जिज्ञासा को शांत करना जरूरी था। मैंने कहा- धरती से मनमाने ढंग से पानी लेने से जलस्तर घटता जा रहा है, पेड़ों की कटाई से वर्षा पर्याप्त नहीं हो रही है परिणामस्वरूप जलाशयों में भी पानी एकत्रित नहीं हो पाता है।

जनसंख्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, साथ ही पानी की मांग भी बढ़ रही है, जिसकी वजह से गर्मी शुरू होते ही जलाशय सूखने लगते हैं। जलपरी जल में ही रह सकती है, जलाशय सूखने पर उसे मजबूरन नए ठिकानों की तलाश में पलायन करना पड़ता है। पानी के दुरुपयोग पर कोई रोक नहीं है।

बेटे ने झट कहा-'बाबा आज से मैं पानी का इस्तेमाल जरूरत के अनुसार ही करूंगा और पानी बचाने का संदेश अपने दोस्तों को भी दूंगा।" मैंने कहा- 'जरूर बेटा हमें यह संदेश जन-जन तक पहुँचाना है।'

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