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संवेदना और जननी

लघुकथा

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मंगला रामचंद्रन
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लगभग प्रतिदिन ही कोई-न-कोई दिवस हो रहा है। उस दिन 'मदर्स डे' था, सो समाचार-पत्र अधिक मोटा था। मां ने उसे टेबल पर रख रोज की तरह घर के कार्यों में लगने का सोचा। तभी अचानक बेटी अंकिता आई और समाचार-पत्र के पृष्ठ पलटने लगीं। उसे यूं तत्परता से पृष्ठ पलटते देख मां को आश्चर्य हुआ। उनके मन में उठे कई-कई प्रश्नों का मानो समाधान करते हुए अंकिता ने बीच के पृष्ठों पर एक जगह उंगली रख दी।

दोनों पृष्ठ मदर्स डे के संदेशों से भरे हुए थे। उनके बीचों-बीच एक बॉक्स में कुछ बड़े अक्षरों में बेटी के नाम का संदेश था :

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'मां, कितना मीठा, कितना प्यारा
ये मात्र शब्द नहीं, मेरी पूरी दुनिया हैं!
तेरी गोद में आकर मैंने पाया छलकता अमृत
और सारे जहां की खुशियां
काश मैं नन्ही-सी जान बनी
तेरी गोद में यूं ही पड़ी रहूं।"

मां की आंखों में आंसुओं का सैलाब-सा आ गया। विहंसती बेटी को छाती से लगाकर माँ गर्वित हो उठी। बारह वर्ष पूर्व जब बच्ची को इस दुनिया में न आने देने के लिए षड्यंत्र हो रहे थे, तब उनके मन में एक ही बात थी कि मां की संवेदना से जुड़ने के लिए भविष्य की एक जननी की ही उन्हें आवश्यकता है। उनकी बात की सत्यता का प्रमाण इतने खूबसूरत अंदाज में सामने पाकर वे अनेकानेक भावों से अभिभूत हो गईं।

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