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स्नेह का सेतु या सैंडविच

मंगला रामचन्द्रन

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'पर हमारा नाम सेतु भी तो हो सकता है। सैंडविच से बीच की वस्तु को पिसने या दबने का एहसास होता है। जबकि हम अपनी पिछली और अगली पीढ़ी को जोड़ते हुए पुल का कार्य कर रहे हैं।'      
'बहू, तनिक पूजा के लिए फूल और तुलसी-दल तो ले आ!' माँजी ने आवाज लगाई।

'बेटा, दफ्तर आने से पहले यह रजिस्ट्री करा देना।' पिताजी की हाँक।

'बाबूजी, सब हो जाएगा, याद से कर दूँगा।' गीता नाश्ते की तैयारी में लगी हुई थी। नीरज स्कूल की यूनिफार्म में तैयार होकर आ गया था।

'मम्मी, मेरे लिए नाश्ते में बटर-जैम सैंडविच देना।'

'अभी टेबल पर रखती हूँ, तब तक आप दादी के लिए कुछ फूल और तुलसी के पत्ते तो तोड़ लाओ।' गीता ने ब्रेड पर मक्खन लगाते हुए कहा।

'अभी लाया।' नीरज बाहर भाग गया।

तभी शैल भी तैयार होकर आ गई, 'मम्मी, मुझे टमाटर-ककड़ी का सैंडविच।'

'अभी तैयार मिलेगा, तब तक यह अखबार दादाजी को दे आ।'

गीता ने कहा। टेबल पर नाश्ता रखते हुए अचानक गीता हँस पड़ी।

'क्या हुआ?' पति आनंद ने पूछा।

'एक ख्याल मन में आया। हम दोनों का नाम सैंडविच हो तो ज्यादा उचित नहीं लगेगा?'

'वो क्यों?' आनंद ने हैरानी से पूछा।

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'माँ-बाबूजी और दोनों बच्चों के बीच फँसे हुए हैं हम।' गीता मुस्कुरा रही थी वरना आनंद घबरा जाता।

'पर हमारा नाम सेतु भी तो हो सकता है। सैंडविच से बीच की वस्तु को पिसने या दबने का एहसास होता है। जबकि हम अपनी पिछली और अगली पीढ़ी को जोड़ते हुए पुल का कार्य कर रहे हैं।'

गीता ने भी सहमति में सिर हिलाते हुए कहा 'सही कह रहे हैं आप। हम ऐसे सेतु हैं जिसके बीच स्नेह की धारा सतत प्रवाहित होती रहती है।'

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