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कही-अनकही 9 : ये कैसी सादगी?

हमें फॉलो करें कही-अनकही 9  : ये कैसी सादगी?
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अनन्या मिश्रा

'हमें लगता है समय बदल गया, लोग बदल गए, समाज परिपक्व हो चुका। हालांकि आज भी कई महिलाएं हैं जो किसी न किसी प्रकार की यंत्रणा सह रही हैं, और चुप हैं। किसी न किसी प्रकार से उनपर कोई न कोई अत्याचार हो रहा है चाहे मानसिक हो, शारीरिक हो या आर्थिक, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, क्योंकि शायद वह इतना 'आम' है कि उसके दर्द की कोई 'ख़ास' बात ही नहीं। प्रस्तुत है एक ऐसी ही 'कही-अनकही' सत्य घटनाओं की एक श्रृंखला। मेरा एक छोटा सा प्रयास, उन्हीं महिलाओं की आवाज़ बनने का, जो कभी स्वयं अपनी आवाज़ न उठा पाईं।'
फ्लैशबैक दृश्य 1: एना को ऑफिस से छुट्टी नहीं मिली और आदि की नौकरी मुंबई में है। आज पहली बार दोनों के परिवार एक दूसरे से मिलने वाले हैं - आदि के घर पर जबलपुर में। एना के मम्मी-पापा आदि के परिवार से मिलने भोपाल से जबलपुर गए हैं। 
 
‘हेलो... इंतज़ार ही कर रही थी, आदि। मम्मी का फ़ोन आया नहीं अभी तक मुझे, तुम्हें आया क्या?’
 
‘हां, मिल लिए हैं घरवाले, मेरी मम्मी का फ़ोन आया था मुझे। शादी की तारीख अभी फिक्स नहीं है लेकिन होटल की चर्चा चल रही थी। सुना तुम्हारे पापा के बहुत कांटेक्ट है पुलिस में और एडमिनिस्ट्रेशन में यहां जबलपुर में...’
 
‘हां, दोस्त हैं कुछ पापा के... कुछ स्टूडेंट्स हैं... वो मदद करा देंगे शादी की तैयारी में अगर जबलपुर से हुई...’
 
‘वही कह रहा था मैं। तुम्हारे पापा बड़ी-बड़ी डींगे हांक रहे थे कि मेरे तो कांटेक्ट हैं, आप चिंता न करो, सब हो जाएगा... तुम अपने पापा को समझा लेना ज़रा, एना... मेरे घरवाले बहुत सीधे-साधे लोग हैं... तुम्हारे पापा ऐसे अपने कांटेक्ट का ज़िक्र करेंगे तो मेरा परिवार डर जाएगा... उनको समझा देना कि आइन्दा से मेरे परिवार के सामने पुलिस या एडमिनिस्ट्रेशन के बड़े लोगों के नाम न लें... वही बेहतर होगा।’
 
‘कैसी बात कर रहे हो आदि? पापा तो बस मदद के हिसाब से कह रहे हैं... तुम्हारे घरवालों ने तो खुश होना चाहिए कि शादी में दिक्कत नहीं आएगी और आसानी से काम हो जाएगा...’
 
‘वो जो भी हो... उनको बस समझा देना। ऐसे नहीं चलेगा।’
 
फ्लैशबैक दृश्य 2: शादी की तारीख तय है। आदि ने एना के मम्मी-पापा को कहा है कि कोई लेन-देन नहीं होगा, लेकिन शायद वो ये बात खुद के घर बताना भूल गया। परिणाम ये हुआ कि आदि के घर से एना के पापा को फ़ोन आया। ‘तुम लड़की वाले हो, औकात ही क्या है तुम्हारी? शादियां देखी भी हैं तुमने? और जो भी हो, हर लड़की का बाप अपनी औकात से ज्यादा देता है अपनी बेटी को। देना ही पड़ेगा तुमको’। एना इस बात से बहुत आहत है। उसने आदि से बात करने का फैसला लिया। 
 
‘हेलो, आदि... तुमने घर पर बताया नहीं था क्या कि तुम यहां क्या बात कर के गए हो?’
 
‘हां... पता चला मुझे आज क्या हुआ। तुम चिंता मत करो, मैंने बात कर ली है घर पर। तुम्हारे पापा को कहना टेंशन न लें।’
 
‘आदि, लेकिन ये क्या तरीका है बात करने का? उन्होंने मेरे पापा को फ़ोन कर औकात की बात की... कहते हैं लड़की वाले हो औकात में रहो... आदि, ऐसे तो नहीं चलेगा... बात करो तुम तुम्हारे घर पर, कि ऐसे बात नहीं कर सकते मेरे पापा से...’
 
‘सुनो एना, तुम बस तुम्हारे पापा को बोल दो कि कोई लेन-देन नहीं होगा। मैं नहीं समझा पाऊंगा मेरे घरवालों को कि क्या बोलना है और क्या नहीं... बहुत सादगी भरे लोग हैं... पहले ही तुम्हारे पापा के कांटेक्ट से डरे हुए हैं... उन्हें और परेशान नहीं करूंगा मैं... फालतू की बात बंद करो तुम... मुझे मत सीखाओ क्या करना है, मेरे घर का मैं देख लूंगा, लेकिन तुमको जितना कहा उतना करो तुम ।’ 
 
‘सादगी’ के नाम पर दिखावा करने वाले ये पढ़े-लिखे आधुनिक परिवार के लोग क्या कभी अपने खुद के बेटे की ख़ुशी की कीमत पैसे से आंकना छोड़ सकेंगे? क्या ये पढ़े-लिखे बड़े कॉलेजों से पढ़ने वाले लड़के अपने घर में अपना मुंह खोल कर बदलते हुए समाज और परिदृश्य का सच अपने परिवार को समझा पाएंगे? या क्या इनकी जड़ों में पनप रही ये आसुरी मानसिकता उन्हें ले डूबेगी तब ये किनारा खोजेंगे? इन्हीं ‘कही-अनकही’ बातों के बीच एना ने चुप्पी साध ली, शादी का सवाल था। आप क्या करते?

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