यूनान में एक प्रसिद्ध दार्शनिक हुए डायोनीज, जो सुकरात के शिष्य थे। उसकी अपनी जरूरतें बहुत ही कम थीं। वह भिक्षा लेकर अपना निर्वाह करते थे और जहां भी शरण मिल जाती थी वहीं रात गुजार लेते थे।
एक दिन लोगों ने देखा कि वह नगर के चौक पर बहुत देर तक एक पत्थर की मूर्ति से भिक्षा मांग रहे हैं। लोगों को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि सभी जानते थे कि वह एक बहुत बड़े दार्शनिक है। इस तरह की कोई हरकत अकारण नहीं कर सकते।
जब डायोनीज की प्रार्थना खत्म हुई तो एक युवक ने आगे बढ़कर पूछा कि उस पत्थर की मूर्ति से आप इतना आग्रह क्यों कर रहे थे? क्या यह पत्थर की मूर्ति आपको भिक्षा देगी?
डायोनीज ने कहा- इस मूर्ति से भिक्षा मांग कर मैं किसी मनुष्य से भिक्षा न मिलने पर भी शांतचित्त रहने का अभ्यास कर रहा था।