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कहानी : सपने जमीन पर

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राकेशधर द्विवेदी

कॉन्फ्रेंस हॉल पूरी तरह अधिकारी और कर्मचारियों से भरा हुआ है। मिस्टर देशपांडे आज कार्यालय की वार्षिक प्रगति की समीक्षा करने वाले हैं। लोगों के मन में एक अव्यक्त सा भय है। मिस्टर देशपांडे एक अनुशासनपसंद कड़क अधिकारी हैं। वो प्रदेश के चिकित्सा से संबंधित सामाजिक सुरक्षा देने वाले कॉर्पोरेशन के सर्वोच्च अधिकारी हैं। 
 
और लीजिए, मीटिंग शुरू हो गई। आप सबको अपने कार्य के प्रति ईमानदार होना पड़ेगा। आपको यह सोचना पड़ेगा कि जो सैलेरी आप घर ले जाते हैं, उसका क्या हिसाब आप अपनी आत्मा को देते हैं। जो सैलेरी आप पाते हैं, क्या उसे अपने कार्य से जस्टीफाई करते हैं। याद है- गांधीजी ने कहा था कि जब आप कोई कार्य करें तो सोचिए कि आपके द्वारा किया गया कार्य समाज के सबसे निचले तबके पर बैठे व्यक्ति को कितना लाभ पहुंचाता है। ये वाक्य आपके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि आप एक ऐसे विभाग से जुड़े हैं, जहां पर आपको सबसे निचले तबके पर बैठे व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा देनी है। 
 
कॉन्फ्रेंस हॉल में सन्नाटा है। लोग सिर झुकाए साहब को सुन रहे हैं। ऐसा लग रहा था कि भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हैं। मिश्राजी भी साहब की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे हैं। साहब का व्यक्तित्व उनके लिए प्रेरणा का विषय है। और हो भी क्यों न, साहब सारे प्रदेश में चर्चा के विषय हैं। अखबारों के पहले पन्ने पर साहब छपते हैं। मीटिंग खत्म होते ही हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कुछ लोग सुनकर ताली बजा रहे थे, कुछ लोग बिना सुने ताली बजाने के अभ्यस्त थे।
 
मिश्राजी बड़ी देर तक ताली बजाते रहे। वे साहब के सम्मोहनकारी व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हैं। 'देशपांडेजी तो मेरे लिए भगवान के समान हैं। ऊपर के भगवान को किसने देखा है, लेकिन अपने ऑफिस के भगवानस्वरूप देशपांडेजी से मैं रोज प्रेरणा लेता हूं।' मिश्राजी ने कॉन्फ्रेंस हॉल से निकलते हुए अपने सहकर्मी मित्रों से कहा।
 
मिश्राजी एक किसान के लड़के हैं। अपने छात्र जीवन में प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना देखते थे। वे सपने तो पूरे नहीं हो पाए, लेकिन मां-बाप के दिए संस्कार अभी भी जिंदा हैं। हर निर्धन, गरीब व जरूरतमंद को देखकर उनके संस्कार कुलांचे भरने लगते थे। कॉर्पोरेशन में वे सुपरिंटेंडेंट के पद पर कार्यरत हैं।
 
हर जरूरतमंद को सामाजिक सुरक्षा पहुंचाना है। साहब का दिया हुआ ब्रह्मवाक्य मिश्राजी के हृदय में उतर गया था। आज साहब ने एक टीम का गठन किया है। उस टीम में मिश्राजी को भी सदस्य बनाया गया है। टीम का कार्य होगा हर आवृत्तनीय प्रतिष्ठान में बीमा लागू कराना और बीमा अस्पताल से समस्त चिकित्सकीय लाभ दिलाना।
 
मिश्राजी और टीम के सदस्यों की साहब आज मीटिंग ले रहे हैं। 
 
 

'मिश्राजी कोई भी प्रतिष्ठान और कोई भी अर्हत व्यक्ति कवरेज के दायरे से बचना नहीं चाहिए। आप टीम के हेड हैं। आपके नेतृत्व में टीम जाएगी। आप निर्भीक होकर जांच कीजिए। मेरा हर स्तर पर आपको सहयोग मिलेगा।'
 
'जी हुजूर।' मिश्राजी ने बड़े ही विनयवत स्वर में जवाब दिया। 'सरकार, आपने मुझ पर विश्वास किया है तो आपके विश्वास पर खरा उतरूंगा।' 
 
टीम ने निर्धारित दिन और निर्धारित समय पर बताए गए एक प्रतिष्ठान पर छापा मार दिया। प्रतिष्ठान में अफरा-तफरी मच गई। मिश्राजी टीम के मुख्य संयोजक हैं। प्रतिष्ठान को दोनों तरफ से सील कर दिया गया जिससे कि कोई भी व्यक्ति बाहर न निकल पाए। 
 
मिश्राजी ने कहा कि 'यहां तो 50 से भी ज्यादा व्यक्ति काम कर रहे हैं। उसके बाद भी चिकित्सा का लाभ प्रतिष्ठान को नहीं। घोर अनर्थ!' मिश्राजी बुदबुदाए। 
 
'एक-एक व्यक्ति का नाम नोट कीजिए।' मिश्राजी ने टीम के अन्य सदस्यों को निर्देश के स्वर में कहा। 'जी', सदस्यों ने अनुपालन किया।
 
'पांडेयजी, आप यहां कितने वर्षों से काम कर रहे हैं?' मिश्राजी ने प्रतिष्ठान के लेखापाल पांडेयजी से कड़क आवाज में पूछा। 
 
'सरकार पिछले 15 वर्षों से।' पांडेयजी ने बेहद नरम आवाज में जवाब दिया। 
 
'उसके बाद भी आपको बीमा अस्पताल की सुविधा उपलब्ध नहीं है?' 
 
'सरकार, सुविधा दिलाना आपका व मालिकों का काम है, हम तो नौकर आदमी हैं।' पां‍डेयजी ने अत्यंत विनम्र स्वर में कहा। 
 
'क्या पगार है आपकी?' मिश्राजी ने कड़क स्वर में पूछा।
 
'जी, सब मिलाकर 15 हजार के पास पहुंच जाता है।' 
 
'ठीक है। आप मेरे बताए सारे दस्तावेज मुझे दे दीजिए। आपके प्रतिष्ठान के सारे कर्मचारियों को बीमा अस्पताल की सुविधा मिलेगी।'
 
'जी सरकार।' पां‍डेयजी ने पुन: विनम्रतापूर्वक दुहराया।
 
टीम अपना काम वापस जा रही है। पां‍डेयजी दरवाजे तक छोड़ने आए, फिर विनम्रता से मिश्राजी से कहा- 'सर, बुरा न मानें तो आप अपना मोबाइल नंबर दे दें।' 
 
'अरे इसमें बुरा मानने की क्या बात है। लीजिए मेरा मोबाइल नंबर।' मिश्राजी ने बड़ी ही सहजता से जवाब दिया। 
 
टीम सर्वे कर पुन: कार्यालय लौट आई है। मिश्राजी ने कार्यालय में आते ही सीधे निदेशक देशपांडेजी के चैम्बर की तरफ प्रस्थान किया। 
 
पीए ने धीरे से कहा- 'साहब, मिश्राजी छापा मारकर वापस आ गए हैं। वे आपसे मिलना चाहते हैं।' 
 
'भेज दो उन्हें अंदर।' साहब ने जवाब दिया।
 
'बोलो मिश्रा, क्या तीर मारकर आए।' साहब ने प्रश्नात्मक शैली में पूछा।
 
'जी, मिशन पूरा कामयाब रहा। संस्थान में बहुत बड़ी चोरी पकड़ी गई है। संस्‍थान तो 10 वर्ष पूर्व ही आवृत्त हो जाना चाहिए था।' मिश्राजी उत्साह में बोले जा रहे थे।
 
'सर मैं डॉक्यूमेंट्री इवीडेंस लाया हूं। फुलप्रूफ है', ऐसा कहकर पांडेयजी द्वारा दिया गया कागज साहब को पकड़ा दिया।
 
'वेलडन मिश्रा, मुझे तुमसे ही उम्मीद थी।' साहब ने मुस्कुराते हुए कहा और कागज अपनी जेब में रख लिया।
 
'प्रतिष्ठान के मालिक कौन हैं?'
 
'जी सुधीर महेश्वरी।' 
 
 

'सुधीर महेश्वरी? वो तो कई होटलों के मालिक भी हैं, समाजसेवी भी हैं और तमाम प्रतिष्ठित सामाजिक संस्थाओं के प्रमुख भी। कल ही तो उनका रोटरी क्लब पर व्याख्‍यान था- 'श्रेष्ठ नागरिक कैसे बनें'।' 
 
'जी उन्हीं का।' 
 
साहब ने विस्मयभरी नजरों से देखा और कहा- 'ठीक है, बचेगा नहीं। आप जाइए और अधिनियम लागू करवाने के लिए नोटिस भेजने की तैयारी करें।'
 
'जी जैसी आपकी आज्ञा।' मिश्राजी ने धीरे से कहा।
 
महेश्वरीजी अब काफी परेशान हैं। उनके 20 वर्षों के व्यावसायिक करियर में यह पहली बार हुआ है कि जब उनके यहां किसी सरकारी विभाग ने छापा डाला हो। महेश्वरीजी ने शहर के गल्ला मंडी में गद्दी से अपना व्यापार शुरू किया था और प्रगति करते-करते वे शहर के आज प्रमुख व्यवसायियों में हैं। सुधीर महेश्वरीजी का शैक्षणिक रिकॉर्ड निहायत ही औसत दर्जे का है। वे प्राइवेट बीए पास हैं, लेकिन उनका व्यावहायिक व व्यावसायिक ज्ञान बड़े-बड़ों को उनकी तरफ आकर्षित करता है। उनके एकमात्र पुत्र राजीव महेश्वरी ने लंदन से प्रबंधन में स्नातकोत्तर किया है। राजीव को व्यवसाय की जिम्मेदारियां सुधीर साहब देने लगे हैं।
 
सुधीर साहब ने पुन: राजीव से कहा- 'राजीव, इसके पहले कि कोई सरकारी कार्रवाई हो, हमें देशपांडे से आज ही मिलना होगा।'
 
'लेकिन उससे क्या होगा?' राजीव ने प्रश्नसूचक अंदाज में पूछा।
 
'क्या होगा और क्या नहीं, ये तो समय ही बताएगा। अभी तो हमें मिलना है। देशपांडे के पीए मिस्टर श्रीवास्तव को फोन मिलाओ।'
 
'अरे श्रीवास्तव साहब, कैसे हैं?' महेश्वरीजी ने दूरभाष पर फरमाया।
 
'जी ठीक हूं, लेकिन मुझ गरीब को कैसे याद कर लिया?'
 
'अरे हुजूर, गरीब आप नहीं, हम हैं। हम तो आपके भरोसे जी रहे हैं। एक कृपा कर दीजिए। जरा देशपांडे साहब से एपॉइंटमेंट दिलवा दें।' 
 
दो मिनट बाद मिस्टर श्रीवास्तव ने जवाब दिया- 'ठीक है महेश्वरीजी, शाम को 6 बजे आ जाइए।' इतना कह उन्होंने दूरभाष रख दिया।
 
पांडेयजी ने मिश्राजी के मोबाइल पर फोन मिलाया और पूछा कि 'मिश्राजी, क्या हम लोगों को बीमा अस्पताल की सुविधा मिल जाएगी? 
 
मिश्राजी ने जवाब दिया- 'अरे मिलेगी क्यों नहीं। पेपर सीधे साहब के हाथों में पकड़ाकर आया हूं। साहब ने कहा है कि कोई कितना भी ताकतवर हो, बचेगा नहीं। आप समझिए, आपका काम हो गया।'
 
एक गजब की खुशी पांडेयजी के चेहरे पर घूम रही थी। पांडेयजी 40 वर्ष की उम्र के व्यक्ति थे। उनकी पत्नी नम्रता पांडेय की उम्र 38 वर्ष के आसपास थी।
 
उनके एक लड़की और एक लड़का है। लड़के की आयु 5 वर्ष के आसपास होगी और लड़की आयु 7 वर्ष होगी। पांडेयजी लाखों रुपए का उधार लेकर पत्नी का इलाज टाटा मेमोरियल अस्पताल में करा रहे हैं। हर महीने की आखिरी तारीख को मांगने वालों की लाइन दरवाजे पर खड़ी दिखाई देती है। 
 
शाम के 7 बजे हैं। कमरे में पांडेयजी की पत्नी खांसते हुए चारपाई पर लेटी हैं। सामने स्टूल है जिस पर कुछ कैंसर की महंगी दवाइयां रखी हैं। छत पर लगा पुराना पंखा धीरे-धीरे चल रहा है। पसीने की बदबू धीरे-धीरे वातावरण में फैल रही है। मां के पास बैठा 5 वर्षींय बेटा वसु कागज के हवाई जहाज को रबर बैंड से फंसाकर हवा में उड़ाता है और हवाई जहाज बड़ी तेजी से हवा में उड़कर पंखे से टकराता है। वह तेजी से हंसता है। बिटिया मुनिया अपनी गुड़िया के साथ खेल रही है। उसने गुड़िया का बहुत सुंदर-सा श्रृंगार किया है। उसे गुड्डे की तलाश है उसकी शादी के लिए।
 
पांडेयजी ने घर में प्रवेश किया और धीरे से मुस्कुराते हुए कहा- 'भाग्यवान, बड़ी ही सुंदर खबर है कि अब तुम्हारी सारी बीमारी का खर्च सरकार उठाएगी। यहां लेकर मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल तक की दवा की सारी जिम्मेदारी सरकार ले लेगी।' 
 
वातावरण जैसे थिरकने लगा। अरे लाखों का खर्च सरकार उठाएगी। मिसेज पांडेय चहक उठी। मां को चहकता देख बिटिया मुनिया ने दीवार पर लगे भगवान की फोटो पर सिर दे मारा। जय भगवानजी की। 
 
वसु भी मौके की नजाकत भांपकर पांडेयजी के गले से लिपट गया। 'पापा मेरे लिए रिमोट वाला हेलीकॉप्टर ला देना। मैं कब से तुमसे कह रहा हूं। मैं रिमोट वाला हेलीकॉप्टर उड़ाऊंगा और ये जमीन पर तब तक नहीं आएगा, जब तक मैं नहीं चाहूंगा', कहकर वसु चहका।
 
 

मुनिया अब कहां चुप रहने वाली थी। उसने भी अपनी फरमाइश ला दी और कहा- 'मेरी गुड़िया के लिए एक अच्‍छा सा गुड्डा। आखिर कब तक इसे घर में कुंआरा बैठाए रखोगे।' 
 
'सबकी हर फरमाइश पूरी करेंगे। अगले महीने से न डॉक्टर को फीस देनी पड़ेगी और न दवाइयों पर पैसा खर्च होगा', मिस्टर पांडेय ने जोश में कहा और ऐसा लगा कि पूरे घर में दिवाली का त्योहार आ गया हो। सपने आंखों में तैरने लगे और लग रहा था वे गगन चूम लेंगे।
 
मिट्टी के सजावटी फूलों ने सुगंध बिखेरना शुरू कर दिया। किनारे रखे हुए मिट्ठू ने 'सीताराम-सीताराम' कहना शुरू कर दिया और तितलियां उड़ने-सी लगीं।
 
शाम के 6 बजने वाले हैं। महेश्वरीजी अपने पुत्र राजीव के साथ पांडेयजी से मिलने चल दिए। उन्होंने कार ड्राइवर से कहा कि प्रतिष्ठित मिठाई की दुकान के सामने गाड़ी रोको। दुकान से उतरकर उन्होंने दो ड्राईफ्रूट के पैकेट पैक रखवाए। एक की कीमत हजार के आसपास और दूसरे की 5 हजार का आसपास। 
 
पुत्र राजीव का वित्तीय प्रबंधन में ज्ञान इस एक हजार के खर्चे को पचा नहीं पा रहा था। वह पूछ बैठा- 'आपने हजार रुपए वेस्ट क्यों किए?'
 
'वेस्ट नहीं, बेस्ट यूज किए। ये पैकेट श्रीवास्तव के लिए। श्रीवास्तव की पो‍जिशन हनुमान मंदिर के बाहर बैठे पुजारी की तरह है। लाल बस्ते में हनुमानजी ढंके हुए हैं, लेकिन पुजारी जब तक नहीं चाहेंगे, आप हनुमानजी के दर्शन नहीं कर पाएंगे।' 
 
राजीव ने विस्मयभरी निगाह से अपने पिता की ओर देखा। लगा कि लंदन प्रबंधन संस्थान के तमाम प्रोफेसर उसके पिता के सामने बौने हैं।
 
शाम को महेश्वरीजी पुत्र समेत देशपांडेयजी के चैम्बर में हैं। देशपांडेयजी ने सख्त आवाज में कहा कि 'मिस्टर महेश्वरी, आपसे यह आशा न थी। आप शहर के प्रतिष्ठित व इज्जतदार व्यक्ति हैं और आप अपने कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं दे रहे हैं। बड़े शर्म की बात है।' उन्होंने मिश्राजी द्वारा दिया हुआ दस्वावेज सामने किया।
 
मिस्टर महेश्वरी सिर झुकाए सुनते रहे, फिर उन्होंने धीर से कहा- 'आज रात हमारे होटल में डिनर में आइए न सर। हमारे यहां का नॉनवेज पूरे शहर में अव्वल है और बिरयानी के तो कहने ही क्या।' 
 
साहब ने मुस्कुराकर कहा- 'चलिए, आता हूं रात में।'
 
होटल रेडीसन शाम को बड़े ही करीने से सजाया गया है। मिस्टर महेश्वरी और उनके पुत्र ने दरवाजा खोलकर मिस्टर देशपांडेय का स्वागत किया- 'वेलकम सर'।
 
रेड कारपेट बिछी हुई थी। एक बेहद सुंदर कमरे में कैंडल नाइट डिनर का प्रोग्राम था। साहब डिनर शुरू करने से पहले वॉश बेसिन में हाथ धोने चले गए। वॉश बेसिन पर हाथ धोने के बाद साहब ने देखा, अरे यहां तो तौलिया नदारद है। साहब ने अपने कोट की एक जेब में हाथ डाला। अरे कमबख्त रूमाल भी आज नदारद है। उन्होंने दूसरे कोट में हाथ डाला तो मिश्राजी द्वारा दिए गए कागज के दस्तावेज हाथ में आ गए। उन्होंने जल्दी से उससे हाथ पोंछ डाले और दस्तावेजों को वॉश बेसिन डाल दिया। वॉश बेसिन के पानी में दस्तावेज तैरने लगे।
 
साहब के नॉनवेज बहुत पसंद आया। विशेषकर बिरयानी के तो क्या कहने। बिदाई के समय महेश्वरजी ने स्पेशन सोने की चेन साहब को गिफ्ट में दी। 
 
'अरे ये किसलिए महेश्वरीजी?' 
 
'सरकार, कभी-कभी तो सेवा का मौका मिलता है। काहे लज्जित करते हैं?' महेश्वरीजी ने मुस्कुराकर कहा।
 
महेश्वरीजी पुत्र समेत गाड़ी तक साहब को छोड़ने आए।
 
'वेलकम मिस्टर माहेश्वरी, बहुत अच्छा स्वाद है। आपके यहां नॉनवेज का और बिरयानी का क्या कहना?' और साहब गाड़ी में बैठकर चल दिए।
 
राजीव ने प्रश्नवाचक स्वरों में पिता से पूछा- 'आपने साहब से पेपर ले लिए?'
 
पिता ने मुस्कुराकर जवाब दिया- 'उसकी भी बिरयानी बन गई।' 
 
पुत्र ने श्रद्धाभरी नजरों से पिता को देखा, जैसे वह प्रबंधन विश्वविद्यालय का कुलपति हो। पिता-पुत्र दोनों हंसने लगे।
 
मिस्टर पांडेय ने मोबाइल पर मिश्राजी से पूछा- 'सर, कब से बीमा अस्पताल की सुविधा मिल पाएगी?'
 
'भाई, फाइल बहुत तेजी से चल रही थी, लेकिन कहीं से बहुत बड़ा पोलिटिकल प्रेशर आया है और फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। कोई नया डेवलपमेंट होगा तो बताऊंगा।' मिश्राजी ने जवाब दिया।
 
मिस्टर पांडेय ने सिर पकड़ लिया। वसु का रिमोट वाला हेलिकॉप्टर, मुनिया का गुड्डा जमीन पर धराशायी नजर आ रहे थे। आंखों में बसे हुए सपने जो हवा में तैर रहे थे, वे जमीन पर बिखरे नजर आ रहे थे।
 
(इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं।) 
 

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