Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अपनों की याद दिलाती कहानी : सूनी होली

हमें फॉलो करें अपनों की याद दिलाती कहानी : सूनी होली
webdunia

संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

मित्र मोहन को होली की मस्ती बचपन में कुछ ज्यादा ही रहती थी। पापा से उसका रंग और पिचकारी के लिए जिद करना, मां का डांटना यानी कपड़े, बिस्तर, परदे आदि खराब न कर दे और घर के बाहर जाकर रंग खेले की हिदायत मिलना तो आम बात थी। मोहन बड़ा हुआ तो दोस्तों के साथ होली खेलना, घर के सदस्यों, रिश्तेदारों को छोड़ होली के दिन दिनभर बाहर रहना ये हर साल का उसका क्रम रहता था।
 
मोहन ने शादी होने के बाद शुरू-शुरू में पत्नी के संग होली खेली। कुछ सालों बाद में फिर दोस्तों के संग। घर में बुजुर्ग सदस्य की भी इच्छा होती थी कि कोई हमें भी रंग लगाए, हम भी खेलें होली। वे बंद कमरे में अकेले बैठे रहते और उन्हें दरवाजा नहीं खोलने की बातें भी सुनने को मिलतीं कि बाहर से मिलने-जुलने वाले लोग आएंगे तो वे घर का फर्श व दीवारें खराब कर देंगे। इसलिए या तो बाहर बैठो, नहीं तो दरवाजा बंद कर दो।
 
मोहन के पिता बाहर बैठे रहते। अक्सर देखा गया कि बुजुर्गों को कोई रंग नहीं लगाता। वे तो महज घर के सदस्यों का लोगबाग पूछते तो बताते रहते। ऐसा लगता है कि घरों में बुजुर्गों के साथ बैठकर भोजन करने एवं उन्हें बाहर साथ ले जाने की परंपरा तो मानो विलुप्त-सी हो गई हो।
 
मोहन की पत्नी की तबीयत खराब रहने लगी। कुछ समय बाद उसका स्वर्गवास हो गया। होली का समय आया तो होली पर मृतक के यहां जाकर रंग डालने की परंपरा होती है। वो हुई और रिश्तेदार रंग डालकर चले गए। अगले साल फिर होली के समय घर के बाहर होली खेलने वालों का हो-हल्ला सुनाई दे रहा था।
 
मोहन दीवार पर लगी पत्नी की तस्वीर को देख रहा था। उसे पत्नी की बातें याद आ रही थीं- 'क्या जी, दिनभर दोस्तों के संग होली खेलते हो, मेरे लिए आपके पास समय भी नहीं है। मैं होली खेलने के लिए मैं हाथों में रंग लिए इंतजार करती रही। इंतजार में रंग ही फीका पड़ व हवा में उड़ गया।'
 
मोहन आंखों में आंसू व दोनों हाथों में गुलाल लिए तस्वीर पर गुलाल लगा सोच रहा था कि वार-त्योहार पर तो घर के लिए भी कुछ समय निकालना था। वे पल लौटकर नहीं आ सकते, जो गंवा दिए।
 
जब बच्चों की मां जीवित थी तो बच्चे एक-दूसरे को रंग लगाने के लिए दौड़ते तब वे मां के आंचल में छुप जाते थे। अब मोहन के बच्चे मोहन और घर के बुजुर्गों को रंग लगा रहे थे। हिदायतें गायब हो चुकी थीं।
 
मोहन दोस्तों से आंखों में आंसू लिए हर होली पे यही बात को दोहराता- 'त्योहार तो आते हैं मगर अब लगते हैं सूने से।' 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या आप भी एड़ी के दर्द से परेशान हैं