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लघु कहानी : अभी भी हैं ऐसे लोग...

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

'एक मीठा पान लगा देना भाई, जरा जल्दी करना ऑफिस के लिए देर हो रही है।'


 
मैं अपना मोपेड वाहन साइड स्टैंड पर लगाकर और आदेश देकर पान का इंतजार करने लगा। दुकान में और भी ग्राहक अपनी बारी के इंतजार में खड़े थे और वे मेरी तरफ देखकर मुस्कराने लगे। इधर दुकानदार ने भी एक उचाट-सी नजर मेरी ओर डाली और हंसने लगा। 
 
पास में खड़े ग्राहक मुस्करा रहे हैं और दुकानदार हंस रहा है। मैं कुछ सतर्क-सा हो गया। क्या बात है? मैंने अपने कपड़ों की तरफ दृष्टिपात किया कि शायद गलत या उल्टे-सीधे कपड़े तो नहीं पहन रखे हैं? अथवा किसी ने गधा, मूरख या पागल जैसा जुमला लिखकर शर्ट अथवा पेंट पर तो नहीं चिपका दिया है?
 
परंतु जब ऐसा कुछ नहीं दिखा तो मैंने पैरों की तरफ देखने का प्रयास किया। शायद एक पैर में बेमेल जूते पहन लिए हों अथवा जुराबें दूसरी दूसरी... पर ऐसा कुछ नहीं था। 
 
मैं सोच ही रहा था कि मैं हास्य का केंद्रबिंदु क्यों बन रहा हूं तभी मुझे दुकानदार की प्रेम से सनी मीठी-सी आवाज सुनाई दी- 'भाई साहब, ये मेडिकल स्टोर है। पान की दुकान 3 दुकानें छोड़कर आगे है।'
 
मैंने दुकान की ओर ठीक से निहारा तो जैसे मेरे ऊपर घड़ों पानी पड़ गया। बुरी तरह से झेंप गया। मेडिकल स्टोर में जाकर पान की फरमाइश कर बैठा था। 
 
'सॉरी' कहकर जैसे ही मैं मुड़ने को हुआ तो दुकानदार बोला- 'कोई बात नहीं भाई साहब, मैं पान यहीं बुलाए देता हूं।'
 
इससे पहले मैं कुछ बोल पाता, उसने अपने नौकर को पान की दुकान से पान लेने भेज दिया। 
 
'दरअसल, आपकी दुकान और पान वाले की दुकान का काउंटर एक जैसा है। मैं धोखा...' मैंने सफाई देना चाही। 
 
'हो जाता है कभी-कभी...' दुकानदार हंस रहा था। 
 
मैं सोच रहा था कि अभी भी दुनिया में ऐसे लोग हैं, जो भावनाओं की कद्र करना...
 
'भाई साहब आपका पान' नौकर की आवाज से मेरी तन्द्रा टूटी। मैंने पैसे देना चाहे। 
 
'मेडिकल स्टोर से पान खाने पर पैसा नहीं लगता।' यह दुकानदार की ही आवाज थी। 
 

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