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अनूठी प्रेम कथा : खून भरी मांग

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देवव्रत जोशी
 
नई शादी हुई थी वीरजी भील की। धीरा उसकी पत्नी का नाम था। अत्यंत सुंदर और बहादुर औरत। तीर-कामठी (धनुष-बाण) लेकर वीर जी शिकार के लिए जंगल गया था, दिनभर घूमता रहा। शिकार न मिला। थककर चूर वह एक पत्‍थर पर सो गया।

गहरी सांस, रात घिर आई थी। आज की खुराक नसीब न हुई। वीरजी की तंद्रा टूटी, कंधे पर तीर-कामठी डाली, वह भारी पगों से घर की ओर चल पड़ा।
 
तभी क्षेत्र के एक दुर्दान्त डाकू कालू ने उसे ललकारा - कूंण है? कां जाई रयो है? (कौन है, कहां जा रहा है?)
 
वीर जी ने मुठभेड़ टालनी चाही, लेकिन अपने क्षेत्र में बेरोकटोक घूमने वाले को दस्यु राज कैसे बर्दाश्त करता?
 
डाकू ने भरपूर वार किया अपने हथियार से। वीरजी धराशायी लुढ़क गया जमीन पर... संज्ञाहीन।
काफी रात बीत गई थी। अपने पति को खोजती धीरा उधर से गुजरी। वीरजी जमीन पर पड़ा था... खून की धार माथे से बह रही थी, दस्यु कालू वहीं खड़ा था अट्‍टाहस करता हुआ।
 
धीरा की रगों में बहादुर बाप का खून था। वह शेरनी की तरह झपटी और अपने दराते से उसने कालू के सिर पर भरपूर वार किया। डाकू कराहता हुआ जमीन पर पड़ा था।
 
पति को तब तक होश आ गया था। उसने पहले सामने खड़ी पत्नी को, फिर घायल डाकू को देखा। वीरजी उठा और अपने खून से अपनी पत्नी धीरा की मांग भर दी। अंचल में इस शौर्य कथा को लेकर एक किंवदंती अब भी प्रचलित है।

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