ओशो रजनीश के पत्रों के संकलन से एक कथा- बात उस समय की है जब लाइट नहीं थी। लोगों ने अंधकार को दूर करने के बहुत उपाय सोचे, पर असफल रहे। तब एक चिंतक ने कहा- हम अंधकार को टोकरियों में भरकर गड्ढों में डाल दें। ऐसा करने से धीरे-धीरे अंधकार समाप्त हो जाएगा।
लोगों ने उसकी बात मानी और रातभर अंधेरे को टोकरियों में भरकर गड्ढों में डालते, पर इससे अंधेरा दूर नहीं होता। फिर भी हर व्यक्ति प्रति रात्रि कम से कम एक टोकरी अंधेरा तो जरूर ही फेंकता था। अंधकार को फेंकने ने एक प्रथा का रूप ले लिया।
फिर उस चिंतक की किसी अप्सरा से शादी हो गई। पहली ही रात बहू से अंधेरे की एक टोकरी फेंक आने को कहा। वह अप्सरा यह सुनकर हंसने लगी। तब उसने एक कटोरे में घी रखा और फिर किसी सफेद पदार्थ की बत्ती बनाई और किन्हीं दो पत्थरों को टकराया। लोग चकित देखते रहे और आग पैदा हो गई। इस तरह अंधेरा दूर हो गया।
उस दिन से फिर लोगों ने अंधेरा फेंकना छोड़ दिया क्योंकि वे दिया जलाना सीख गए थे। जीवन से अंधकार हटाना व्यर्थ है, वरन प्रकाश को जलाने का उपाय सोचे।