रामजी मिश्र 'मित्र
सुबह-सुबह 'सुरम्य' आज खेतों की ओर घूमने आया है। कोयल उसे मीठा गाना सुनाने का प्रयास कर रही है तो मोर मीठी और तीव्र आवाज से उसका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने का प्रयास कर रहा है। पर सुरम्य को कुछ भी रास नहीं आ रहा है। वह महज दस साल का ही तो है फिर भी उसे प्रकृति भी लुभा नहीं पा रही। वह आगे बढ़ता है फिर उस छोटी बगिया की ओर मुंह करके ठहर जाता है। आह इधर ही तो उसकी मां को लाया गया था जहां उसकी चूड़ियां तोड़ी गईं थी। पहले घर में उसे सजाया गया था और फिर यहां उसे ऐसा करके अकेला छोड़ दिया गया था।
सुरम्य मन ही मन अजीब भावों में गोते सा लगाता उसी बगिया की ओर तेजी से बढ़ने लगा। वह कह रहा था कि पापा तुम होते तो मां को इतना दुःख न दिया जाता।फिर कुछ बुदबुदाता हुआ आगे बढ़ रहा है। कुछ ही देर में बगिया में सुरम्य का पक्षी अपने मधुर स्वर से स्वागत करते हैं सुरम्य उन तरह तरह के पक्षियों की ओर दुखी भाव से देखता है। फिर वहीं बैठ कर मां की चूड़ियों के टूटे खंड देखकर फफक पड़ता है।
आज उसे फिर वह दिन याद आ जाता है जब वह चुपके से दुखी मां के साथ हुए अत्याचार को देख रहा था। आज उसका साथ देने वाला कोई न था वह अकेली थी रोती बिलखती और बेहोश होती। मैं दौड़ कर मां के पास गया तो था पर काश मां शांत हो पाती तो कितना सुन्दर होता। वह चूड़ी के खंडों के कुछ टुकड़े लेकर वहीं सो जाता है अंखियों से बही अश्रुधारा उसके गाल पर सुखी नदी की भांति लग रही थी। कुछ ही क्षणों में उसे अपनी मां के मरने का समाचार मिलता है।
जहां उसके पिता जलाये गए थे लोग उसकी मां को भी वहीँ जलाने लाए हैं। नहीं मेरी मां को मत जलाओ। इतना कहते ही वह मां की गोदी से चिपक जाता है। गांव के सब लोग उसे अलग खींच रहे हैं। अब सुरम्य चिल्ला रहा है मां को चिपक कर मुझे मेरी मां से अलग मत करो। मां उठ बैठती है और कहने लगी कौन अलग कर रहा है मेरे बेटे को मुझसे।
उसके आंसू से सुरम्य के गालों पर अब अश्रुधारा के प्रवाह तेज हो चुके थे मां और पुत्र दोनों के आंसू पवित्र संगम से कम न थे। अचानक सुरम्य की आंख खुलती है वह खुद को मां की गोद में पाता है। कहां-कहां नहीं ढूंढा बेटे और तुम यहां रो रहे थे। सुरम्य भोली-सी आंखों से देखकर कुछ अलग तरह के सुख-दुःख की अनुभूति करते हुए और मां के आंसू पोंछते हुए कहता है 'माँ तुम भी तो रो रही हो"। हाथों से मां चूड़ी के टुकड़े छुड़ा कर फेंकते हुए कह रही थी जो मेरे बेटे को मुझसे अलग कर रहा है कौन है वह?
रामजी मिश्र 'मित्र' / स्वतंत्र पत्रकार
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