छोटी का बाप शराबी था। पूरा शरीर अल्कोहलिक हो चुका था। कई बार कोशिश की कि शराब छुट जाए, लेकिन नहीं छुट पाई।
मरणासन्न स्थिति में डॉक्टर ने कहा था कि थोड़ी-थोड़ी शराब देते रहो, नहीं तो इसके अंग बिलकुल भी नहीं चलेंगे।
बापू चीख रहा था, छोटी जरा-सी दे दे बेटा, कहीं से ला दे।
छोटी को बापू की चीत्कार सहन नहीं हुई।
लाज-शर्म छोड़कर वह शराब की दुकान पर गई और बोली एक क्वार्टर दे दो।
काउंटर पर बैठा आदमी हड़बड़ा गया कि एक 15 साल की लड़की शराब मांग रही थी और सब शराबियों की नजरें उसकी देह को ललचाई निगाहों से
देख रही थीं।
शर्म से गड़ी छोटी अपने बाप की जान बचाने के लिए उन गंदी नजरों का सामना करती हुई शराब लेकर घर आई और बापू को एक गिलास में शराब
दी।
शराब पीकर बाप सो गया किंतु मेरे मस्तिष्क में छोटी का कोमल निस्पृह चेहरा घूम रहा था। शराबी बाप की जान बचाने के लिए सिर्फ बेटी ही अपनी
इज्जत दांव पर लगा सकती है और कोई नहीं। उस समय मेरे जेहन में वह पेंटिंग घूम रही थी जिसमें जेल में अपने पिता की जान बचाने के लिए
बेटी उस बूढ़े बाप को अपना स्तनपान कराती है। शायद छोटी भी उसी पेंटिंग का एक हिस्सा थी!