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कहानी : अपने-अपने दु:ख...

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राकेशधर द्विवेदी

शहर के सबसे सुंदर इलाके सिविल लाइंस में शर्माजी का सरकारी आवास है। शर्माजी का पूरा नाम है यशस्वी शर्मा। वे आयकर उपायुक्त हैं। जैसा नाम है यशस्वी वैसा ही यश, नाम व रुतबा है उनका। शर्माजी की पत्नी का नाम निशि शर्मा है। वे एक आदर्श गृहिणी हैं और इस परिवार का तीसरा सदस्य है बहादुर। शर्माजी का घरेलू नौकर लगभग 12-15 वर्ष का लड़का। एक चौथा सदस्य भी है, जो कि श्री व श्रीमती शर्मा को बहुत प्रिय है। वह है उनका टामी नाम का प्यारा-सा पामेरियन कुत्ता।

मिस्टर शर्मा की तूती पूरे आयकर विभाग में बोलती है। शहर के सबसे ज्यादा आयकर देने वाले सर्कल के वे उपायुक्त हैं। उनकी शान-शौकत व पहुंच की चर्चा पूरे आयकर विभाग में है। एक दूसरे सज्जन विजय वर्मा साहब हैं। वैसे वे भी उपायुक्त हैं, लेकिन शर्माजी के जूनियर हैं और मुख्यालय के कम्प्यूटर सेक्शन और जनसंपर्क विभाग के प्रभारी हैं। 
 
यह भी इत्तेफाक है कि मिस्टर शर्मा और मिस्टर वर्मा आस-पास के बंगलों में रहते हैं। दोनों की धर्मपत्नियां मित्र हैं और एक ही किटी क्लब की मेंबर हैं। जिस प्रकार कार्य‍-वितरण और रुतबे का आलम मिस्टर शर्मा का है, तो मिसेज शर्मा का लेडीज क्लब और किटी पार्टी में है। गौर करने लायक है कि हर जगह वर्मा दंपति, शर्मा दंपति के जूनियर हैं।
 
मिस्टर शर्मा के पास यदि होंडा की सिविक है, तो मिस्टर वर्मा के पास सिटी कार। मिस्टर शर्मा यदि 25,000 रुपए की घड़ी पहनते हैं, तो वर्माजी की कलाई घड़ी की कीमत 10,000 के आसपास होगी अर्थात शरीर की कांति से लेकर हर एक मामले में वे आगे हैं। किटी पार्टी में भी मिसेज शर्मा की ही तूती बोलती है। तमाम समकक्ष की सहधर्मिणियां यह जानने में लगी रहती हैं कि मिसेज शर्मा ने क्या खरीदा। जो खरीदा, समझ लो वही लेटेस्ट फैशन है। 
 
टामी के भाग्य में भी कुछ कम नहीं है। उसको लेकर मिस्टर शर्मा अपनी होंडा सिविक गाड़ी पर निकलते हैं और जब वह खिड़की से मुंह निकालकर राजपथ का अवलोकन करता है तो उसकी शोभा किसी वायसराय से कम नहीं प्रतीत होती है। वह मिस्टर और मिसेज शर्मा दोनों का ही स्वीट हार्ट है। 
 
 
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अब आइए कुछ बातें बहादुर के बारे में। यह 12 वर्षीय बालक अकाल में सताए हुए गरीब किसान माता-पिता का लड़का है, जो मां-बाप की मदद हेतु नौकरी करने गांव से दूर 200 किमी चला आया। लेकिन मां-बाप के शब्द अभी भी उसके कानों में गूंजा करते हैं कि 'धरती हमारी मां है और यह अपना वक्ष चीरकर हमें अन्न देती है। अन्न देवता है। हमें कभी भी इसका अपमान नहीं करना है, सो बहादुर कभी अन्न फेंकता नहीं था।' 
 
घर के खाने से लेकर नाश्ते तक की सारी जिम्मेदारी बहादुर की थी। बहादुर सबको खाना खिलाकर अंत में बचे हुए खाने को खाता था। चाहे खाना बासी हो, वह उसे फेंकता नहीं था। यदि वह खाने योग्य हो तो मिसेज शर्मा के यह कहने पर कि 'बहादुर फेंक दे इसे डस्टबीन में', तब बहादुर धीरे से कहता है- 'मैम, अन्न का अपमान नहीं करते हैं, इसमें देवताओं का वास होता है।'
 
इधर कुछ दिनों से शर्मा परिवार की ग्रहदशा कुछ अच्‍छी नहीं चल रही थी। शर्माजी को फील्ड पोस्टिंग से हटाकर मुख्यालय से अटैच कर दिया गया। शर्माजी ने तुरंत दिल्ली तक फोन लगा दिया। ऊपर से आश्वासन आया कि जल्दी ही आपका पुराना चार्ज मिल जाएगा। शर्माजी का चार्ज मिस्टर वर्मा को मिल गया था। 
 
शर्माजी ने तुरंत कुंडली पंडित को दिखाई। पंडितजी ने कहा कि साढ़े साती शुरू हो गई है। चढ़ता हुआ शन‍ि कष्ट देता है। आप हनुमानजी की उपासना करें और लाल वस्त्र धारण कर बाहर निकलें। तो शर्माजी ने पूरे महीने के लिए 30 लाल कमीजें सिलवा लीं। हनुमान चालीसा का पाठ दिन में कई बार करना शुरू कर दिया।
 
आज मिसेज शर्मा का जन्मदिन है। वैसे तो जन्मदिन को शर्मा दंपति भगवान के दर्शन और पूजा-हवन से ही मनाते थे, लेकिन फिर भी जन्मदिन की विशेष सौगात देना शर्माजी नहीं भूलते थे तो आज ही उन्होंने मिसेज शर्मा के लिए 5 तोले का भारी-भरकम सोने का सुंदर हार खरीद लिया और सायंकाल घर पहुंचे और हार लेकर मिसेज शर्मा के पास पहुंचकर कहा- 'हैप्पी बर्थडे', 'मैनी-मैनी हैप्पी रिटर्न ऑफ डे'। दे‍खिए, मैं आपके लिए क्या लाया हूं। मिसेज शर्मा ने हार देखकर कुछ अनुत्साहित-सा उत्तर दिया- 'ठीक है, अभी रख दीजिए।' बात आई-गई हो गई और दिन बीत गया।
 
मिसेज शर्मा का जन्मदिन बीत गया लेकिन सखियों के प्रश्न अभी बाकी थे। तो सबसे प्रिय सखी मिसेज सिंह ने पूछ ही लिया- 'अरे कल आपका जन्मदिन था। क्या दिया शर्मा साहब ने?'
 
'अरे, ये सोने का हार लेकर चले आए और सोचने लगे कि मैं गले से लगा लूंगी, लेकिन मैंने भी बड़ी बेरुखी से कहा कि रख दी‍जिए, सो वे अपना-सा मुंह लेकर रह गए।' मुस्कुराकर मिसेज शर्मा ने कहा।
 
 
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'भाई, सबको पता है कि सोने के दाम आजकल कम हो गए हैं।' मिसेज शर्मा की बात सुनकर मिसेज सिंह मुस्कुराई। 'भाभाजी, इतना भी खराब नहीं है। काफी सुंदर है। शर्माजी की पसंद काफी अच्‍छी है। आखिरकार आपको भी तो उन्होंने ही पसंद किया है।' 
 
सुनकर मिसेज शर्मा चुप न रहीं और कहा- 'अरे विवाह तो इनके मां-बाप ने तय किया था लेकिन जब तक इन्होंने लड़की देख न ली, हां नहीं किया।' और दोनों सखियां हंसकर एक-दूसरे से लिपट गईं। 'दो दिन बाद किटी पार्टी है। आप इसे पहनकर चल‍िएगा। पार्टी में छा जाएंगी आप। ठीक है मिसेज सिंह।' 
 
आज दो दिन बीत गए। किटी पार्टी है। मिसेज शर्मा अपने 5 तोले के सोने के हार के साथ पार्टी के आकर्षण का केंद्र बनी हैं। तमाम औरतें हार के विषय में पूछ रही हैं। भाभीजी ने यहां से खरीदा आदि-आदि। तभी मिसेज वर्मा पार्टी में प्रवेश करती हैं। ऊपर से लेकर नीचे तक डायमंड से लदी और वह भी लेटेस्ट मॉडल तनिष्क का फैशन डिजाइन।
 
और सारी महिलाएं मिसेज शर्मा को छोड़कर मिसेज वर्मा के पास चली जाती हैं। 'अरे मिसेज वर्मा, वेरी स्वीट हार है। बहुत सुंदर। आपने तो लेटेस्ट डिजाइन खरीदा है। भाई क्या कहने। आजकल तो डायमंड का जमाना है। गोल्ड तो आउटडेटेड हो गया है।' 
 
मिसेज शर्मा को काटो तो खून नहीं। उन्होंने धीरे से अपने पल्लू से हार को छुपा लिया और 'बहुत जरूरी काम है' कहकर पार्टी से सीधे घर आ गईं। घर आकर सीधे आईने के सामने मिसेज शर्मा खड़ी हो गईं। और आज तो आईना भी मुंह चिढ़ा रहा है, जैसे कह रहा है- 'मिसेज शर्मा आप आउटडेटेड हो गईं'। वे अपने दु:ख को किससे साझा करे, समझ नहीं पा रही थी। वे अपने दु:ख को किससे बयान करें, समझ नहीं पा रही थी।
 
मिस्टर शर्मा आज सुबह से दिल्ली में मुख्यालय में मोबाइल से फोन मिला रहे थे। उनको आश्वासन मिला था कि आज कोई शुभ समाचार मिलेगा। लेकिन दूसरी तरफ से आवाज आई कि 'भाई, अभी धैर्य बनाए रखिए। मार्च के पश्चात ही नया चार्ज मिल पाएगा।'
 
मिस्टर शर्मा ने चौंककर कहा- 'मार्च यानी छह माह और लगेगा?' 
 
'जी कम से कम।' उधर से आवाज आई। 
 
शर्मा साहब मायूस होकर घर की ओर चल दिए। घर का दरवाजा रोज की तरह बहादुर ने खोला। हमेशा की तरह टामी दौड़कर लिपट गया। पर न तो मिस्टर शर्मा ने उस दुलारा और न स्वीट हार्ट कहा। टामी आखिरकार मुंह लटकाकर बैठ गया।
 
इधर मिसेज शर्मा भी अपने दुख से दुखी थी, सो उन्होंने भी मिस्टर शर्मा के किसी प्रश्न का जवाब नहीं दिया। बहादुर ने पनीर की सब्जी, चपातियां, दही, खीर, सलाद, पुलाव व अन्य पकवान मेज पर सजा दिए किंतु मिसेज शर्मा ने कहा कि 'वे कुछ नहीं खाएंगी।' मिस्टर शर्मा ने भी कुछ खाने से मना कर दिया। उनका अपना दुख था, सो वे भी कुछ नहीं खाएंगे। 
 
अंत में खाने को टामी की तरफ बढ़ाया गया। मिस्टर शर्मा ने बड़े प्यार से कहा- 'स्वीट हार्ट, कुछ खा लो।' लेकिन टामी का मुंह लटका रहा, तो लटका ही रहा। उसका भी अपना दुख है, तो वह भी खाना लाख मनाने पर और मिस्टर शर्मा के दुलारने पर भी नहीं खाएगा।
 
अंत में सारा खाना बहादुर के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए मिस्टर शर्मा ने कहा कि 'लो बहादुर खाना खा लो।' 
 
बहादुर को अपने माता-पिता की बात याद आ गई। अन्न में देवता का निवास होता है। किसान तमाम कष्ट सहकर अन्न पैदा करता है। इसका कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए। धरती मां नाराज होती हैं, सो उसने आज्ञा को शिरोधार्य कर पूर्ण तृप्ति के साथ भोजन किया। खाना बिलकुल बर्बाद नहीं हुआ। 
 
आज मिस्टर शर्मा, मिसेज शर्मा और टामी अपने-अपने दुख से दुखी थे, लेकिन बहादुर इन तमाम दुखियों के बीच एक सुखी आत्मा है। उसने अन्न देवता का अपमान नहीं होने दिया। यह उसका अपना सुख है। 

 

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