यह कहानी ओशो ने अपने किसी प्रवचन में सुनाई थी। यह कहानी अध्यात्म के अलावा सांसारिक समस्याओं का भी समाधान बताती है। जरूरी नहीं है कि आप इसे अध्यात्म के संदर्भ में समझे। जीवन में हम ऐसी कई गलतियां करते हैं कि हमें करना कुछ और चाहिए और करते कुछ और हैं।
एक सूफी संत थी- राबिया। उनका जन्म अरब में आठवीं शताब्दी में हुआ था। एक दिन राबिया आंगन में कुछ ढूंढ रही थी। बहुत देर हो गई, लेकिन उसे वह चीज नहीं मिली तब एक शिष्य ने आखिर राबिया से पूछा- आप क्या ढूंढ रही हैं?
राबिया ने कहा- मेरी सुई गुम हो गई है। मैं उसे ही ढूंढ रही हूं।
शिष्य ने कहा- हम सभी सुई को ढूंढने में आपकी मदद करते हैं। सभी शिष्यों ने पूरा आंगन छान मारा, लेकिन सुई का निशान तक नहीं मिला। आखिर थक-हारकर एक शिष्य ने पूछा- अब आप याद करके यह बताएं कि आपकी सुई यहीं गुम हो गई थी या और कहीं?
राबिया ने बहुत ही सहज भाव से कहा- याद क्या करना वह तो मुझे मालूम ही है कि सुई घर में गुम हो गई है।
तब सभी शिष्यों ने हंसते हुए कहा- आप भी क्या पागलपन की बातें करती हैं। सुई घर में गुम हो गई है और आप आंगन में ढूंढ रही हैं। अजीब है, ऐसा तो कोई बच्चा भी नहीं करेगा।
तब राबिया ने गंभीर होकर कहा- मैं भी तुमसे यही कहना चाहतती हूं कि ईश्वर तुम्हारे दिलों में गुम हो गया है और तुम उसे बाहर ढूंढ रहे हो।