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लघुकथा : एबॉर्शन

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सुशील कुमार शर्मा

रात के 11 बजे थे। दरवाजे पर खटखटाहट हुई। शुभा ने दरवाजा खोला। आनंद खड़ा था। वह शुभा को लगभग धकेलता हुआ अंदर आया। दोनों बेटियां सो रही थीं।
 
'डॉ. से मेरी बात हुई है। कल जांच के लिए चलना है। अगर लड़की हुई तो एबॉर्शन की डेट ले लेंगे', आनंद ने लगभग निर्णय सुनाते हुए कहा।
 
आनंद और शुभा के 2 बेटियां थीं। जब तीसरी बार शुभा गर्भवती हुई तो शुभा की सास ने स्पष्ट कह दिया था, 'देख बेटा आनंद, मुझे इस बार पोता ही चाहिए वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।'
 
शुभा तीसरी बार बच्चा नहीं चाहती थी किंतु आनंद और परिवार की जिद के कारण उसे मानना पड़ा। किंतु वह एबॉर्शन किसी भी हालत में नहीं चाहती थी अतः उसने आनंद का प्रतिवाद किया।
 
'चाहे लड़का हो या लड़की, मैं एबॉर्शन नहीं कराऊंगी।'
 
'पागल हो तुम, 3-3 लड़कियों की पढ़ाई और शादी का खर्च कैसे पूरा होगा?' आनंद ने गुस्से में कहा।
 
'क्यों लड़का होने पर क्या खर्च कम हो जाएगा क्या?' शुभा ने व्यंग्य करते हुए कहा।
 
'लड़के से हमारा वंश चलेगा', आनंद ने प्रतिवाद किया। 'लड़कियों का क्या है, दूसरे का वंश चलाएंगी, साथ में दहेज और देना पड़ेगा।'
 
'अच्छा जब सुरभि दीदी को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था तो किसका नाम हुआ था? मंच से किसका नाम पुकारा गया था? पिताजी का न कि उनके ससुराल वालों का। पेपर में सुरभि दीदी के साथ पिताजी की फोटो देखकर आप कितने खुश थे। आपने ही कहा था, 'देखो मेरी बहन ने मेरे परिवार और मेरे पिता का नाम रोशन कर दिया।' शुभा ने आनंद को पुरानी बात याद दिलाई।
 
'आनंद मैं तो अपनी दोनों बेटियों से ही खुश थी किंतु आपकी जिद के कारण ये बच्चा आया है। अब ये लड़का हो या लड़की, उसे अच्छे मन से स्वीकार करो।' शुभा ने आनंद को प्यार से समझाते हुए कहा।
 
'लेकिन मम्मी...ऽऽऽ मम्मी...ऽऽऽ कैसे मानेंगी', मम्मी का भय आनंद के चेहरे से स्पष्ट झलक रहा था।
 
शुभा ने कहा, 'तुम उसकी चिंता मत करो, मैं उनसे बात करूंगी।'
 
रात को शुभा ने अपनी सास से कहा, 'मम्मी, पंडितजी का फोन आया था। कह रहे थे कि अगर एबॉर्शन करवाया तो आनंद की जान को खतरा है। राहु मंगल के साथ मारकेश बना है।' इतना सुनते ही शुभा की सास सकते में आ गईं।
 
'नहीं बेटी, हम एबॉर्शन नहीं कराएंगे, चाहे बेटा हो या बेटी। पंडितजी से कहना वो कोई पूजा वगैरह कर दें ताकि मेरे बेटे के ऊपर से ये बला टल जाए।' लगभग कांपते हुए शुभा की सास ने शुभा से कहा।
 
'जी मम्मीजी, मैं पंडितजी से कह दूंगी', शुभा मन ही मन मुस्करा रही थी। 
 
'कल ये डॉ. के पास जाने की कह रहे थे।' शुभा ने डरते हुए पूछा।
 
'नहीं, कोई जरूरत नहीं है डॉ. के पास जाने की, लड़का हो या लड़की, हमें दोनों मंजूर हैं।' सास ने अपना निर्णय सुना दिया।
 
शुभा सोच रही थी कि हर मां को उसकी संतान कितनी प्रिय होती है, ये उसकी सास ने साबित कर दिया।
 

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