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अंतर्द्वंद्व

लघुकथा

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-महेन्द्रसिंह सेंगर
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शर्माजी जब गाँव से शहर आए थे तब उनके पास कुछ सौ रुपयों के अलावा कुछ नहीं था। एक मिल में फोरमैन की नौकरी की। अच्छे व्यवहार, कड़ी मेहनत, ईमानदारी और कर्मठता की वजह से मिल मालिक चतुर्वेदीजी भी शर्माजी से बहुत खुश थे। उन्हें उसी मिल में मैनेजर बना दिया गया। कुछ दिनों बाद चतुर्वेदीजी ने अपनी इकलौती बेटी शीतल का विवाह शर्माजी से कर दिया। एक दिन चतुर्वेदीजी का निधन हो गया और उनकी सारी सम्पत्ति के मालिक शर्माजी बन गए।

आज शर्माजी के पास ईश्वर की कृपा से सब कुछ था। अथाह सम्पत्ति, चार-पाँच मिलें, आलीशान बंगला, नौकर-चाकर और सबसे बड़ी बात सुंदर, शालीन, कर्मकांडी और नेक पत्नी। बस नहीं था तो औलाद का सुख।

दौलत की चकाचौंध से शर्माजी के व्यवहार में बदलाव आ गया। धरम-करम में उनका विश्वास नहीं रहा। कभी किसी की मदद नहीं करते न किसी से सहानुभूति रखते। अपने कर्मचारियों से भी उनका व्यवहार अनुकूल नहीं रहता था। उनके सुख-दुःख में कभी सहभागी नहीं बनते।

इसके ठीक विपरीत शर्माजी की पत्नी शीतल बहुत दयावान और धरम-करम में विश्वास रखने, हर वक्त दूसरों की मदद करने वाली महिला थीं। शायद उनके इसी व्यवहार से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उनकी प्रार्थना सुन ली और शादी के दस साल बाद उनकी गोद भर दी। कुछ समय पश्चात उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम रखा गया समीर। उसकी किलकारियों से घर का सूनापन दूर हो गया। धीरे-धीरे वह बड़ा होने लगा। अब वह सात साल का हो गया है। शर्माजी उसे बेहद प्यार करते हैं। उसकी हर इच्छा व जिद पूरी करते हैं, लेकिन अन्य लोगों से उनका व्यवहार पहले जैसा ही है।

एक दिन शर्माजी और उनका पुत्र समीर घर की बालकनी में बैठे केले खा रहे थे और उसके छिलके नीचे सड़क पर फेंक रहे थे। इतने में एक बूढ़ी महिला उनके द्वारा फेंके गए केले के छिलके पर पैर पड़ने से गिर गई और दर्द से कराहती रही। यह देख समीर ने शर्माजी से कहा- 'पापा देखो वह बुढ़िया गिर गई'। इस पर शर्माजी ने कहा- 'गिर जाने दो, देखकर नहीं चलेगी तो गिरेगी ही, तुम तो केले खाओ'। कुछ लोगों ने बुढ़िया को सहारा देकर उठाया और अस्पताल पहुँचाया, लेकिन शर्माजी का दिल नहीं पसीजा।

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थोड़ी ही देर बाद सड़क के दूसरे छोर से एक आइसक्रीम वाला जा रहा था। उसे देख समीर ने जिद की कि उसे आइसक्रीम खाना है। शर्माजी के लाख समझाने पर भी वह नहीं माना। हारकर शर्माजी ने उसे पैसे देकर कहा जाओ ले आओ। समीर दौड़ा-दौड़ा गया और जब आइसक्रीम लेकर लौट रहा तो उसका पैर केले के छिलके पर पड़ा और वह गिर गया। उसके गिरते ही एक तेज रफ्तार से आतट्रउसे रौंदता हुनिकल गया। शर्माजी दौड़ते हुए नीचे आए, लेकिन तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था। समीर के प्राण-पखेरू उड़ चुके थे।

शर्माजी समीर की लाश को उठाए श्मशान की ओर चले जा रहे थे। उनके मन में अंतर्द्वंद्व चल रहा था कि यह मेरी लापरवाही का नतीजा है या...।

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