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इन्विटेशन का दुख

ये कैसा आमंत्रण?

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- राजश्री कासलीवाल

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मेरे एक परिचित हैं श्री जैन। उनकी दुकान का मुहूर्त था। श्री जैन काफी संपन्न और पैसे वाले थे। पैसे के इस अहंकार के चलते वो गरीब इंसान को कचरा समझने लगे। जब मुहूर्त का दिन नजदीक आया तो उन्होंने अपने ही बड़े भाई के घर कुछ इस तरह फोन लगाया कि आमंत्रण खुशी के बजाय पीड़ा दे गया।

श्री जैन ने फोन पर कहा : 'घरवालों को पत्रिका नहीं दी जाती इसलिए मैं घर पत्रिका देने नहीं आ रहा हूँ। मैंने फोन लगा दिया है, फिर मत कहना कि मैंने बुलावा नहीं दिया! आना-नहीं आना ‍तुम्हारी मर्जी। बाद में मुझे ताना मत देना। वो तो मेरी पत्नी ने कहा कि घरवालों को पत्रिका नहीं दी जाती इसलिए फोन लगा दो तो मैंने लगा दिया। तुम देख लेना।'

आमंत्रण भी दिया तो कैसा, जिसमें ना ही समय, पता और ना ही खाने का बुलावा। आखिर ये कैसा इन्विटेशन। बेचारे बड़े भाई का परिवार अब इस सोच में परेशान हकि इतने बड़े लोगों के यहाँ जाए तो कैसे जाएँ। क्या गरीब घर के लोगों का कोई सम्मान नहीं होता?

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