- चंद्र मौलेश्वर प्रसाद
मैं बस में सफर कर रहा था। एक वृद्ध मेरी बगल में बैठा था। हाथ में एक खूबसूरत गुलदस्ता (बुके) लिए हुए वह कुछ-न-कुछ बुदबुदा रहा था। ऐसा लगता था कि उसके जीवन में कुछ ऐसी दुखद घटना घटी है, जो उसके उदास चेहरे की झुर्रियों में इंगित हो गई है।
एक...दो...तीन...चार...पाँच, वह अपनी उँगलियों पर गिनकर किसी सोच में डूब गया। अनायास ही उसकी नजर पास में बैठी एक पाँच वर्षीय लड़की पर पड़ी जो उस बुके की ओर लालायित नजरों से देख रही थी। जब उसकी नजरें उस वृद्ध की नजरों से मिलीं तो वह मुस्कुराई और फिर उसी बुके की ओर घूरने लगी।
ठीक है, मैं अपनी पत्नी से कह दूँगा कि मैंने यह बुके तुम्हें दे दिया है। यह सोचकर वह वृ्द्ध उस लड़की के हाथ में गुलदस्ता थमाकर बस से उतर गया। मेरी नजरें उसका पीछा करती रहीं। वह वृद्ध करीब के कब्रिस्तान की ओर चल पड़ा। मुझे याद आया कि आज ईस्टर है।
साभार- मसि-कागद