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खुशी

लघुकथा

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पिलकेन्द्र अरोरा
ND
एक समाजसेवी संगठन द्वारा उन पेरेंट्स का सम्मान किया जा रहा था, जिन्होंने अपने पुत्र या पुत्री का अंतरजातीय विवाह कर समाज के सामने एक नया आदर्श प्रस्तुत किया था। नगर के एक रूढ़िवादी व्यवसायी परिवार का भी इस अवसर पर अभिनंदन किया गया। उनकी पुत्री ने पिछले दिनों परिवार की मर्जी के खिलाफ भागकर एक विजातीय युवक से प्रेम विवाह किया था। हालाँकि बाद में परिवार को मजबूर होकर उस विवाह को स्वीकार करना ही पड़ा था।

कार्यक्रम के बाद चाय-पान के दौरान व्यवसायी ने अपने मित्र से बात करते हुए कहा- 'आदर्श'-'वादर्श' से अपने को क्या लेना-देना! अपने को तो खुशी इस बात की है कि मंदी के दौर में अपने 25 लाख रु. सूखे बचे। न दान, न दहेज और न पार्टी-वार्टी का खर्च! और सम्मान का सम्मान भी मिल गया।

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