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गरीब्बां दी गाड़ी

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हमें फॉलो करें गरीब्बां दी गाड़ी
- नीता श्रीवास्तव

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ऐसी बात नहीं है कि वह अपने पिता से प्रेम नहीं करता....असल में बात यह है कि वह अपने दादाजी को भी बहुत प्रेम करता है। दोनों को बराबर का सम्मान भी देता है किंतु दादाजी के साथ अपने पिता का व्यवहार उसे तकलीफ देता है।

छुटपन से देखता आ रहा है वह। उसके पिता दादाजी को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। दादाजी की मेहनत-उपलब्धि....त्याग-सिद्धांत-संस्कार-संघर्ष तक को हमेशा पैसों से तौल कर हास्य-व्यंग्य में उड़ा देते। कभी नहीं आभार मानते कि मामूली तनख्वाह में पूरे कुनबे को संभालते हुए दादाजी ने उनके हर सपने को पूरा किया था।
आज उसका सपना भी पूरा हुआ है। डिग्री लेकर निकलते ही एक प्रतिष्ठित संस्थान में प्लेसमेंट....उम्मीद से दस गुना पैकेज। पूरा परिवार बेहद प्रसन्न....दादाजी ने पीठ थपथपाते हुए पूछा- 'पहली पगार से क्या खरीदोगे लल्ला....?'
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आज उसका सपना भी पूरा हुआ है। डिग्री लेकर निकलते ही एक प्रतिष्ठित संस्थान में प्लेसमेंट....उम्मीद से दस गुना पैकेज। पूरा परिवार बेहद प्रसन्न....दादाजी ने पीठ थपथपाते हुए पूछा- 'पहली पगार से क्या खरीदोगे लल्ला....?'

वह जवाब देता इससे पूर्व उसके पिता गर्व से बोल पड़े- 'पगार का हिसाब मत पूछिए बाउजी....क्लर्की-पोस्टमास्टरी वाली मुट्ठी भर पगार थोड़े ही है कि साइकल खरीदने से पहले भी सोचना पड़े....वह तो खड़े-खड़े मेरी गाड़ी के जैसी गाड़ी खरीद सकता है....पहली ही पगार में....'

दादाजी का चेहरा उतर गया....तड़प उठा वह- 'पापा....आपकी गाड़ी की तरह....? कभी नहीं....आप नहीं जानते पापा बड़े शहरों के बड़े लोग साइकल की तो कद्र भी करते हैं और पुकारते भी हैं साइकल नाम से.... मगर वे लोग आपकी गाड़ी का अच्छा भला नाम होते हुए भी किस नाम से पुकारते हैं....पता है आपको....? गरीब्बां दी गाड़ी....नाम से।'

पिता का चेहरा फक्क्‌ पड़ गया....तड़पकर वह हट गया वहाँ से। उसने कभी नहीं चाहा था पिता का दिल दुखाना....मगर क्या करता वह? दादाजी का दिल दुखते भी तो नहीं देख सकता था वह चुपचाप।

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