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धर्मात्मा कौन

लघुकथा

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कृष्णा झालानी
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वह एकांत प्रेमी थे। संसार की ओर से हमेशा उदासीन रहा करते थे। जब कभी उन्हें समय मिलता था तब वह जीवन की क्षण भंगुरता, शरीर की नश्वरता और संसार की असारता के विषय में ही सोचा करते थे।

परिवार स्नेहमयी माता-पिता, परायणा पत्नी, एक आज्ञाकारी पुत्र, दो सुशील कन्याओं से सुसम्पन्न था। फिर भी मन भटकता ही रहता था। किसी की मृत्यु देखकर थर्रा उठता था। वह श्रीकृष्ण के उपासक थे। गीता के प्रेमी थे, दिन भर भजन कीर्तन किया करते थे।

घर-गृहस्थी जंजाल लगती। वह व्यापारी थे पर उसमें उनका मन नहीं लगता था। नतीजन परिवार वालों को कष्टमय जीवन बिताना पड़ता था। उन्हें लगता था मानव शरीर भजन के लिए मिला है भोजन के लिए नहीं, इसे खोकर फिर सिवाय पछताने के और कुछ न होगा।

  परिवार स्नेहमयी माता-पिता, परायणा पत्नी, एक आज्ञाकारी पुत्र, दो सुशील कन्याओं से सुसम्पन्न था। फिर भी मन भटकता ही रहता था। किसी की मृत्यु देखकर थर्रा उठता था। वह श्रीकृष्ण के उपासक थे।      
ऐसा ही सोचकर वह एक दिन घर-परिवार सब छोड़कर अँधेरे में ही घर से निकल लिए। अब गृहस्थी की जिम्मेदारी बेचारी बूढ़ी माँ व पत्नी पर आ गई। लोगों के घर के काम करके बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करती। एक समय रोटी खाकर किसी तरह गुजर बसर करती।

दिन भर मेहनत मजदूरी करके बच्चों को पढ़ाया दुनिया में कुछ करने लायक बनाया। लोग उन्हें धर्मात्मा कहते हैं ,आप ही बताएँ वह पिताजी धर्मात्मा थे या दादी व माँ जिन्हें कभी एक भजन गाते भी नहीं सुना।

साभार : लेखिका 08

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