दादी के न चाहते हुए भी सोनी कराटे की कक्षा में जाने लगी। दादी का कहना था कि ये कुश्ती-लड़ाई सब लड़कों को ही शोभा देती है। लड़कियों को इन सब चीजों की जरूरत ही क्या है! सोनी और उसकी माँ जानती हैं कि लड़के-लड़कियों दोनों को ही आत्मरक्षा के लिए इन दाँव-पेंचों को सीखना जरूरी है।
रोज-रोज दादी के टोकते रहने से एक दिन सोनी बोल ही दी, 'दादी तुम्हारे पोतों को स्कूल-कॉलेज और कोचिंग के अलावा दुनिया में और किसी चीज का महत्व ही नहीं है। कल को जरूरत पड़ने पर वे अपनी ही रक्षा नहीं कर पाएँगे।'
फिर दादी का कुछ खीझता हुआ चेहरा देखकर अपनी बाकी बात में हास्य का पुट देते हुए बोली, 'हो सकता है भविष्य में रक्षाबंधन का सूत्र भाई अपनी बहनों की कलाई पर बाँधे और बहनें उनकी रक्षा करने का वादा करें।
दादी ने अपनी पोपली हँसी के साथ उसे डाँट दिया, 'चल बदमाश कहीं की।' आजकल के लड़कों का स्वास्थ्य और जीवनशैली देख सोनी की माँ की तरह उनके दिमाग ने भी इस नई संभावना से इंकार नहीं किया।