जाग्रति महिला दिवस के उपलक्ष्य में दुनिया के समस्त प्रगत देशों की प्रतिनिधि अपने-अपने देशों में महिलाओं के हक में बने हुए कायदे, सामाजिक सुरक्षा, न्याय एवं आरोग्य की सुविधाएँ एवं महिलाओं की प्रगति पर सरकार कितना खर्च कर रही है इन विषयों के आँकड़े पेश कर रही थीं। सारे प्रगति देश अपनी-अपनी हकीकत आँकड़ों में पेश कर चुके। अंत में भारत की बारी आई। भारत की प्रतिनिधि ने खड़े होकर कहा कि मैं और देशों जैसे सामाजिक न्याय के आँकड़े पेश करने में असमर्थ हूँ।
क्यों? आपके देश में स्त्रियों पर इतना अन्याय हो रहा है कि उनकी फेवर में न्याय प्राप्ति के बाबत एक भी आँकड़ा पेश नहीं हो सकता?
प्रश्नों की बौछार में भारत की प्रतिनिधि ने कहा - भारत में स्त्री को देवी की तरह पूजा जाता है न्याय की देवी भी स्त्री ही है। न्याय में असमानता न हो इसलिए वे आँख पर पट्टी बाँधकर ही न्याय तौलती है। भला उन पर अन्याय कौन कर सकता है? इसलिए हमारे देश में स्त्री अन्याय के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। और हॉल तालियों से गूँज उठा।
साभार : लेखिका 08