मैं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बाग (जिला धार) आदिवासी क्षेत्र में पदस्थ हूँ। मेरा परिवार महू में होने से मैं अपडाउन करता हूँ। बाग टांडा क्षेत्र से कई आदिवासी परिवार मजदूरी के लिए महू-इंदौर पलायन करते रहते हैं। एक शनिवार मैं महू में ड्रीमलैंड चौराहे से पैदल जा रहा था अचानक मेरे ठीक सामने एक गरीब बुजुर्ग आदिवासी महिला चलते-चलते रुक गई।
वह मुझे गौर से देखती रही फिर आदिवासी भाषा में कहने लगी- डॉक्टर साहब, मैंने तुम्हें पहचान लिया। दो साल पहले मेरी बहू की फौरी (प्रसव) आपने बाग अस्पताल में की थी। बड़ी मुश्किल से बहू और बच्चे की जान बचाई थी।
इतना कहकर उसने अपनी थैली में से पाँच रुपए का नोट निकाला व मुझे देने लगी। साथ ही कहा- डॉक्टर साहब, चाय पी लेना। उसके चेहरे पर उस समय खुशी और आत्मीयता की चमक थी। अचानक वो पाँच रुपए मुझे पचास हजार से भी ज्यादा लगने लगे।