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प्रैक्टिकल

लघुकथा

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- स्वाति राजेश मुल
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किसी संत को वो बहुत मानती हैं। बातों-बातों में बता रही थीं कि हमारे स्वामीजी के आश्रम में लोग खूब गौदान करते हैं। मैंने कहा- 'अच्छी बात है, कम से कम गौमाता को चारा, पानी व गौशाला तो नसीब हो जाती है। वर्ना बेचारी सड़कों पर इधर-उधरमुँह मारती फिरती रहती हैं। वे बोली- सही कहा। लेकिन कुछ गाएँ ऐसी भी होती हैं जो जरा भी दूध नहीं देती, ऊपर से उनके चारा-पानी का खर्च भी आश्रम को उठाना पड़ता है। इसलिए हमारे स्वामीजी तो उन्हीं गायों को आश्रम में रखते हैं जो दूध देती हैं। निठल्लों को खिलाने से क्या मतलब। ऐसी गायों को वे भी किसी को दान में दे देते हैं। उनकी बात सुनकर मैं मन ही मन सोचती रह गई- 'वाकई, स्वामीजी काफी 'प्रैक्टिकल' हैं

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