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ज्योति जैन
कछुए और खरगोश की इस कलयुग में पुन: मुलाकात हुई। अपने पूर्वजों की हार को खरगोश भूला नहीं था कि किस तरह शाणपत में उसके पूर्वज हार गए थे और कछुआ जीत गया था। अब वह हार स्वीकारने को तैयार नहीं था। उसे अहंकार भी था।
कहाँ वह स्वयं सफेद झक पोषाक वाला और कहाँ वह खुरदुरा, बदरंग कछुआ? उसने फिर से कछुए से शर्त लगाई कि इस बार तो मैं ही जीतूँगा। कछुआ तैयार हो गया। एक स्थान तय किया गया कि जो वहाँ पहले पहुँचेगा, वही विजेता घोषित होगा।
सारे जानवर इकट्ठे हो गए कि देखें! इस बार कौन जीतता है! निश्चित समय व निश्चित जगह से दोनों एक साथ रवाना हुए। खरगोश कुछ ही पलों में आगे निकल गया। कुछ दूर जाकर पीछे मुड़कर देखा।
कछुए का दूर-दूर तक नामोनिशान न था। फिर भी उसने सोचा, यहाँ कौन देख रहा है। मैं छोटे रास्ते से निकलकर जल्दी ही गंतव्य स्थान पर पहुँच जाता हूँ। वह बड़े आराम से छोटे रास्ते से चलकर जीत के लिए तय स्थान पर पहुँचा तो देखा कछुआ वहाँ पहले ही विराजमान था। खरगोश हैरान रह गया। उसने पूछा - 'यह कैसे संभव हुआ। तुम मुझसे पहले कैसे पहुँचे? आज तो मैं सोया भी नहीं।
कछुआ बड़े आराम से हाथ झाड़कर बोला - 'लगता है तुम टीवी नहीं देखते। सुनो, तुमने ऐसा तो कुछ तय नहीं किया था कि कैसे पहुँचना है। तो मैंने सबसे पहले कोल्ड्रिंक पिया, फिर चैंपियनों के वाहन पर सवार होकर यहाँ आ गया और वैसे भी मैं एनर्जी सीक्रेट ड्रिंक हर रोज पीता हूँ। खरगोश फिर हार गया।
फिर हारा खरगोश - (2)
बरसों बाद कछुए और खरगोश में फिर रेस लगी। सब जानवर एक तय जगह एकत्र हुए। खरगोश ने सोच लिया था इस बार कम्बख्त मटमैले कछुए से नहीं हारूँगा, और रेस शुरू होते ही उसने थोड़ी दूर झाड़ियों में छिपी साइकिल निकाली और दौड़ाई गंतव्य की ओर।
इधर कछुआ लोकतंत्र में रहकर राजनीति सीख गया था। उसने भागते हुए खरगोश पर एक नजर डाली और पहले से तय की हुई सारे जानवरों के लिए एक शानदार पार्टी शुरू कर दी। छककर खाए-पीए जानवरों ने नि:संदेह 'कछुआ ही विजेता है,' ऐसी घोषणा कर दी। खरगोश एक बार फिर हार गया।