समीर श्रीवास्तव
एक प्रकांड ज्योतिषी थे राजशंकर। उनके यहाँ भविष्य जानने वालों की कतार लगी रहती। वे लोगों का हाथ देखकर उनका भविष्य सँवारने का उपाय बताते। चारों ओर उनकी प्रसिद्धि फैल रही थी, उनके नाम का डंका बज रहा था। इसी बीच एक दिन एक मजदूर उनके पास अपना भविष्य जानने पहुँचा।
राजशंकरजी ने उसे अपना हाथ दिखाने के लिए कहा, मजदूर ने अपने हाथ उनके सामने इस प्रकार किए कि हथेली नीचे की ओर रही। इस पर राजशंकरजी को क्रोध आया, बोले- 'मूर्ख रेखाएँ हथेली पर देखी जाती हैं। अपनी हथेली दिखा।'
मजदूर हँसते हुए बोला - 'हथेली की कोई रेखा आड़े नहीं आती। मैं जब पत्थर तोड़ने के लिए घन चलाता हूँ तब हथेली की सब रेखाएँ ढँक जाती हैं।' तब ज्योतिषाचार्यजी को अपनी गलती का एहसास हुआ कि मनुष्य का भाग्य-निर्माण रेखा नहीं उसका कर्म करता है।
साभार : मसि कागद