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भूख

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- नीता श्रीवास्तव
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यूँ कहने को वो चार भाइयों के बीच अकेली बहन थी, लेकिन समझती थी कि भाइयों पर भी अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी है, मगर दामाद राजा सिर्फ यह जानते थे कि इकलौते दामाद हैं। अतः उनकी पूछ-परख वीआईपी सरीखी ही होना चाहिए। हर माँग...हर हुक्म मुँह से निकलते ही पूरा होना चाहिए और मुँह हूबहू सुरसा-सा। चार भाई भी थक गए थे भरते-भरते।

वह बोली- 'अब तो भाइयों से माँगने में शर्म आती है।' सुनकर पति ने और धमकाया... तो सुनकर भाइयों ने स्वयं को तथा बहन को भी बहलाया- 'अरे... तेरा तो हक है हम पर... जो माँगेगी... जी जान से कोशिश करेंगे देने की।'

हक..? वह जता कहाँ पाई... पत्र आते तो टपके आँसुओं के धब्बे वाले। फोन आते तो हमेशा रिरियाते हुए। बहन की दर्द भरी आवाज भाइयों को हमेशा दहला जाती, मगर इस बार तो हद ही हो गई। फोन आया... वही रिरियाता-सा- 'भैया... आज कहकर गए हैं अगर शाम तक एटीएम में पैसे नहीं आए तो सुबह नहीं देखने देंगे मुझे।'

थरथरा उठे सब भाई... काँप उठा पूरा घर। इतनी बड़ी रकम... आज ही... कम से कम चौबीस घंटे का वक्त तो दिया होता। जोड़-तोड़ करते ही आधी रात हो गई फिर भी एक ही तसल्ली कि इंतज़ाम हो गया।
  यूँ कहने को वो चार भाइयों के बीच अकेली बहन थी, लेकिन समझती थी कि भाइयों पर भी अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी है, मगर दामाद राजा सिर्फ यह जानते थे कि इकलौते दामाद हैं। अतः उनकी पूछ-परख वीआईपी सरीखी ही होना चाहिए।      


सबने सोचा... सुबह होते ही दामाद राजा को हाथ के हाथ ही नकद राशि दे आएँगे, लेकिन सुबह होने से पूर्व ही फोन बज उठा।

औपचारिक-सी सूचना भर... हक्के-बक्के से खड़े रह गए भाई-भाभियाँ, आह तक भर सकने की ताकत गवाँ चुके थे वृद्ध माता-पिता।

किससे कहें... किससे पूछें- 'गैस होते हुए भी बिटिया को स्टोव्ह पर खाना पकाने की क्या सूझी... और वह भी मुँह अंधेरे इतनी सुबह? इतने सवेरे-सवेरे और इतनी जोर से भूख किसे लगी थी, उसके ससुराल में?'

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