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ज्योति जैन
वे दोनों पति-पत्नी समाज में बड़े प्रतिष्ठित माने जाते थे। उस दिन उनका घर बड़ा सजा सँवरा था। झालरें/वंदनवार लटक रहे थे। कुल मिलाकर उत्सव का माहौल लग रहा था। खुशी का कारण था कि उनके नि:संतान बेटे-बहू ने एक अनाथ कन्या शिशु को गोद लिया था और इसी अवसर पर उस दिन एक पार्टी का आयोजन था।
जैसा कि स्वाभाविक था, सभी लोगों के श्रीमुख से प्रशंसा के स्वर निकल रहे थे - भई वाह! क्या विचार हैं इनकी बहू के। रिश्तेदारों ने कहा भी था कि गोद ही लेना है तो लड़का गोद लो, बुढ़ापा सुधर जाएगा,
लेकिन वह कहती - 'एक अनाथ लड़की गोद लेकर उसका जीवन सँवार दूँगी तो पूरा जन्म ही सुधर जाएगा। सच है भई! शिक्षा तो मुँह से बोलती है। पढ़े-लिखे लोगों के विचार भी उच्च होते हैं, बहू के संस्कार अच्छे हैं वगैरह..।' दिन भर इसी प्रकार की बातें चलती रहीं।
दोपहर बाद जब गिनती के केवल मित्र/रिश्तेदार ही रह गए तो दिन भर अपनी बहू के साथ प्रफुल्लित होते सास-श्वसुर अपने एक बेहद अंतरंग मित्र के साथ बोल पड़े - बहू कुछ भी चाहे, हमने तो लड़का ही लेना चाहा था, पर सब लोग लड़का आते ही ले लेते हैं, वेटिंग चल रही है, मिलता ही कहाँ है? इसलिए मन मारकर लड़की ही गोद लेने की इजाजत दे दी।
साभार : शुभ तारिका