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रिटायर आदमी

लघुकथा

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कुमुद मारू
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फालतू आदमी कौवे की तरह होता है। दिनभर काँव-काँव करता है"- बहू ने कहा। "पिताजी अब आप खाली मत बैठिए, कुछ किताबें पढ़ा कीजिए।" बहू के इस सुझाव पर वे किताब पढ़ने लगे ही थे कि बेटे ने व्यंग्य कसा- "बुढ़ापे में क्या किताब पढ़ने का शौक पाल लिया। अब आपको तो कुछ सूझता ही नहीं।" वे बेटे की इस बात पर बत्ती बुझा सोने चले गए।

सबेरे जागे तो पत्नी से कहा- "सुनो मेरी चाय तो बना दो, थोड़ा टहल आऊँ।" पत्नी ने जवाब दिया- "तुम भी न... मुर्गे की तरह इतनी सबेरे उठ जाते हैं। सोचा था, तुम्हारे रिटायरमेंट के बाद खूब देर तक सोती रहूँगी। पर..."

वे टहलकर लौटे तो आँगन में खेलता पोता बोला- "आओ ना दादू घोड़ा-घोड़ा खेलें। मेरा घोड़ा बनो ना।" पोते की टक-टक करती ध्वनि में वे घोड़ा बने सोच रहे थे क्या वाकई रिटायर आदमी कौवा, मुर्गा और घोड़ा बन जाता है।

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