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वह नौबत कभी नहीं आएगी

लघुकथा

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अशफाक़ क़ादरी
WDWD
गरीब बस्ती में उनकी मोटरसाइकिल एक झुग्गी के आगे रुकी। धूप सेंक रहे बुजुर्ग से वे कहने लगे, 'ओ बाबा, हमें एक मजदूर की जरूरत है।'
बुजुर्ग ने उन्हें सिर से पाँव तक देखा और अपनी जगह उठ खड़ा हुआ और कहने लगा, 'चलो कहाँ चलना है?'

'तुमसे क्या काम होगा' वे उसकी जवान बेटी की ओर भूखी निगाहों से देखते हुए कहने लगे, ऐसा कर इसे काम पर भेज दे।'

वह गुर्रा उठा।' यह जवान लड़की है इसलिए उसे ले जाना चाहते हो', वह विस्फारित नेत्रों से कहने लगा, अभी इन बूढ़ी हड्‍डियों में इतना दम है कि वह बड़े से बड़ा बोझ उठा सकता है, अभी वह नौबत नहीं आई है कि यह तुम्हारे यहाँ पर जाए और वह नौबत कभी नहीं आएगी। वह हाँफता हुआ अपनी जगह पर बैठ गया।

साभार : शुभ तारिका

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