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शब्द और अर्थ का फासला

मंगला रामचंद्रन

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Devendra SharmaWD
रेणु का छह वर्षीय बंटी माँ से किसी चीज की माँग को लेकर जिद कर रहा था। रेणु उसे समझा रही थी, 'बेटे, हर काम को करने का और खाने का वक्त होता है, बेवक्त करने या खाने से नुकसान ही होता है।'

'मुझे तो अभी चाहिए, वरनाऽऽऽ' नन्हे-से बेटे के मुँह से 'वरना' सुनकर रेणु को हँसी आ गई। माँ को हँसता देख बंटी ने अपनी बात कुछ इस तरह पूरी की, 'वरना मैं आपका रेप कर दूँगा।'
रेणु क्रोध से काँपने लगी और आवेश में उसके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे। पर हाथ उठ गया और उसने बंटी को जोर से धक्का दिया।

बंटी सोफे से नीचे गिरा और रोने लगा, उसे थोड़ी-सी चोट भी आ गई थी। थोड़ा-सा क्रोध कम होने पर रेणु ने पूछा, 'ये कहाँ से सीखा? किसने सिखाई ऐसी गंदी बात?'

'जब फिल्म में दीदी कहना नहीं मानती तो गंदा आदमी ऐसा ही करता है।' बंटी सुबकते हुए बोला।

'तुम गंदे आदमी हो क्या?'

  'मुझे तो अभी चाहिए, वरनाऽऽऽ' नन्हे-से बेटे के मुँह से 'वरना' सुनकर रेणु को हँसी आ गई। माँ को हँसता देख बंटी ने अपनी बात कुछ इस तरह पूरी की, 'वरना मैं आपका रेप कर दूँगा।'      
'आप चीज नहीं दे रही थीं इसलिए गंदा आदमी बन गया।'

रेणु ने गौर से बेटे के चेहरे को देखा, वहाँ अभी भी बाल-सुलभ भोलापन और चपलता ही नजर आ रही थी। फिर भी शंकित मन को शांत करने को उसने पूछा, 'रेप क्या होता है?'

'मुझे क्या पता? कोई साँप होगा जिससे गंदा आदमी कटवाता होगा। मेरे पास तो कुछ भी नहीं है, मैं तो वैसे ही आपको डरा रहा था जिससे आप चीज दे दो।' बंटी अपनी नन्ही खाली हथेलियाँ हिलाते हुए बोला।

रेणु की साँस में साँस आई, 'शब्द और उसके अर्थ का फासला अभी भी बहुत है।' उसने मन-ही-मन कहा।

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