उस दिन सिटी बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी। सड़कें भी लगभग सूनी सी थीं। धार्मिक विवाद को लेकर हुई हिंसा की घटनाओं से व्याप्त तनाव ही शायद इसका कारण था।
वे दोनों बस में एक ही सीट पर बैठे थे। दोनों ही बुद्धिजीवी प्रतीत हो रहे थे। दोनों के बीच धार्मिक कट्टरता की निंदा को लेकर बातचीत शुरु हो गई।
यूँ तो वे अलग-अलग धर्म से थे, पर दोनों के विचार खुले तथा निष्पक्ष थे। उनके मन में एक-दूसरे के धर्म प्रति सम्मान की भावना झलक रही थी।
धार्मिक संकीर्णता को कोसते हुए, तर्क देते हुए बातचीत जोरों पर थी।.....तभी एक धार्मिक स्थल रास्ते में आया। उनमें से एक का सिर अपने आप झुक गया, किंतु दूसरा चाहकर भी अपना सिर झुका नहीं पाया।