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ससुराल नहीं घर समझना
लघुकथा
सीमा पांडे 'सुशी'
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तुम शादी होकर नए घर में आ गई हो, लेकिन इसे ससुराल नहीं घर समझना।' '
देवर को छोटा भाई समझना, उसका नाम मत लेना भाई साब कहना, ननद को दीदी कहना, छोटे बच्चों से भी सम्मान से बात करना, इसे ससुराल नहीं घर समझना।' '
हम कहें वैसा खाना बनाना, बिना पूछे कुछ मत बनाना, सबको खिलाना फिर खाना, इसे ससुराल नहीं घर समझना।' '
सब बात कर रहे हों तो अपना मत नहीं बताना, ससुरजी से नजरें मत मिलाना, जेठ से बराबरी से बात मत करना, हमेशा सिर ढँककर रखना, इसे ससुराल नहीं घर समझना।' '
मायके की सारी बातें भूल जाना, माता-पिता का कभी जिक्र मत करना, भाई-बहनों की बातें मत छेड़ना, इसे ससुराल नहीं घर समझना।' '
चुपचाप रहना, सबकी दो बातें सुनना, सबकुछ सहना, गुस्से को पी जाना और मुस्कराते रहना, इसे ससुराल नहीं घर समझना।'