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सोशल एनिमल

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नियति सप्रे
'सोहन, आज फिर तुम इतने सारे कुत्ते के पिल्ले ले आए। दिनभर चिल्लाएँगे। हम न कुछ पढ़ सकते हैं, न टीवी देख सकते हैं। रातभर कूँ, कूँ करते रहते हैं। नींद तक पूरी नहीं होती', पड़ोस की दादी ने सोहन और साथ खेल रहे बच्चों को टोका।

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अरे दादी, ये जो दो नए पिल्ले हैं, उनकी माँ मर गई है। इसलिए ये जो भूरे वाले हैं, उनकी माँ ही इन्हें दूध पिलाएगी। आज ही आए हैं इसलिए लड़ रहे हैं। कल तक दोस्त हो जाएँगे। जरा इन पर दया तो कीजिए' सोहन ने पिल्ले को पुचकारते हुए कहा।

'तुम्हें इनका ध्यान है, हम 80-85 साल के इंसानों की तबीयत का ख्याल नहीं है। रातभर हल्ले के मारे सो तक नहीं पाते हैं', दादी ने चिढ़ते हुए कहा।

' दादी पहले एनिमल फिर सोशल एनिमल। यही कायदा है। इसलिए जानवरों को मारने पर सजा मिलती है और इंसानों को मारने पर आजादी!' सोहन ने शांत भाव से उत्तर दिया।

दादी ने भी पास सोए टॉमी को देखा और कुर्सी पर बैठे दादाजी को। खुद के पदचिह्नों पर भावी पीढ़ी को चलते देख दादी भयभीत हो गईं।

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