मंगला रामचंद्रन
नेताजी का भाषण अपने पूरे शबाब पर था। वे जोशो-खरोशो से अपनी बुलंद आवाज में सेना के जवानों का मनोबल बढ़ा रहे थे और साथ ही सिविल लोगों की युवा पीढ़ी को भी प्रेरणा दे रहे थे। - ''सरहद पर हमारी सेना जिस तरह दुश्मनों को परास्त कर रही है, उससे हम देशवासियों का सीना चौड़ा हो जाता है।वैसे भी भारत का इतिहास महापुरुषों की वीरता और बलिदानों से भरा पड़ा है। ऐसे वीर बलिदानी देश पर मर-मिटने को तैयार जवानों की माँओं को मैं प्रणाम करता हूँ। देश की प्रत्येक माँ से कहना चाहूँगा कि वे अपने बच्चों को बचपन से देश-सेवा के कार्य का महत्व समझाएँ। ईश्वर को एक बार नमन करना भूल जाएँ पर ऐसी माताओं व इन जाँबाज सैनिकों को प्रणाम करना न भूलें।'भाषण समाप्त करते-करते उनका गला रुँध गया और आँखों में आँसू आ गए। लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट व गले में फूलों की अनगिनत मालाओं के बोझ से दबे नेताजी गद्गद् होते हुए सबसे विदा ले रहे थे। रात को अपनी बेटी के साथ दूरदर्शन पर समाचार रिपोर्ट देखते हुए फूले नहीं समा रहे थे। वाह पापा, आपने अपना सिक्का जमा दिया। भीड़ आपको कितनी तल्लीनता से सुन रही थी। सच पापा, आपके विचारों से मुझे राहत मिली है वरना भैया को तो आपने विदेश भेजकर घर से ही नहीं, देश से भी दूर कर दिया। नेताजी ने अपनी बेटी की ओर देखा। 'पापा! जो भी हो, मुझे आप पर गर्व है।' नेताजी का सीना चौड़ा होते-होते बेटी बोली, आपके विचार जानकर तो मेरा भय दूर हो गया।''
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भाषण समाप्त करते-करते उनका गला रुँध गया और आँखों में आँसू आ गए। लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट व गले में फूलों की अनगिनत मालाओं के बोझ से दबे नेताजी गद्गद् होते हुए सबसे विदा ले रहे थे। |
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कैसा भय बेटी?' परेशान होकर नेताजी ने पूछा।
'मैं कैप्टन अजय को चाहती हूँ, यानी कि हम दोनों एक-दूसरे को चाहते हैं। अब आपकी इजाजत तो लगभग मिल ही गई। आपको अपने दामाद पर कितना फख्र होगा न! कहते-कहते बेटी लाड़ से उनके कंधे पर टिक गई। नेताजी को कंधे पर बेटी का बोझ नहीं लगा वरन् अपने धराशायी सपने का महल व उसकी टूटी-बिखरी ईंटों का वजन लगा।