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(श्रावण सोमवार)
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देवउठनी एकादशी का महत्व जानिए

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हमें फॉलो करें देवउठनी एकादशी
हमारे वेद-पुराणों में मान्यता है कि दिवाली के बाद पड़ने वाली एकादशी पर देव उठ जाते हैं। यही वजह है कि देवउठनी ग्यारस के बाद से सारे शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि प्रारंभ हो जाते हैं।
 
ग्यारस के दिन ही तुलसी विवाह भी होता है। घरों में चावल के आटे से चौक बनाया जाता है। गन्ने के मंडप के बीच विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। पटाखे चलाए जाते हैं। देवउठनी ग्यारस को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। देवउठनी या देव प्रबोधिनि ग्यारस के दिन से मंगल आयोजनों के रुके हुए रथ को पुनः गति मिल जाती है।
 
कार्तिक शुक्ल एकादशी का यह दिन तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है और इस दिन पूजन के साथ ही यह कामना की जाती है कि घर में आने वाले मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्न हों। तुलसी का पौधा चूंकि पर्यावरण तथा प्रकृति का भी द्योतक है। अतः इस दिन यह संदेश भी दिया जाता है कि औषधीय पौधे तुलसी की तरह सभी में हरियाली एवं स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रसार हो। इस दिन तुलसी के पौधों का दान भी किया जाता है। चार महीनों के शयन के पश्चात जागे भगवान विष्णु इस अवसर पर शुभ कार्यों के पुनः आरंभ की आज्ञा दे देते हैं।
 
भारतीय पंचांग के अनुसार एकादशी की तिथि का महत्व यूं भी बहुत है। अतः इस दिन को विशेष पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है। इस दिन से विवाह के अतिरिक्त उपनयन, गृह प्रवेश आदि अनेक मंगल कार्यों को संपन्न करने की शुरुआत कर दी जाती है।
 
इस दिन पूजन के साथ व्रत रखने को भी बड़ा महत्व दिया जाता है। महिलाएं इस दिन आंगन में गेरू तथा खड़ी से मांडणे सजाती हैं और तुलसी विवाह के साथ ही गीत एवं भजन आदि के साथ सभी उत्सव मनाते हैं।
 

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