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श्रीमद्भागवत गीता में बताए गए हैं मकर संक्रांति के 6 रहस्य

हमें फॉलो करें श्रीमद्भागवत गीता में बताए गए हैं मकर संक्रांति के 6 रहस्य

WD Feature Desk

Makar Sankranti 2024: सूर्य के मकर राशि में गोचर को हिंदू धर्म में सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। इस दिन सूर्य स्पष्‍ट रूप से उत्तरायण गमन करने लगता है। गीता में सूर्य के उत्तरायण होने का महत्व बताया गया है। आओ जानते हैं कि कौन से 6 रहस्य छुपे हैं मकर संक्रांति के महापर्व में ।
 
1. सूर्य होता है उत्तरायण : आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सूर्य प्रतिदिन पूर्व से नहीं या तो ईशान से या फिर आग्नेय कोण से उदय होकर गमन करने लगता है। ऐसे कुछ ही दिन हैं जबकि वह एकदम से पूर्व से ही उदय होता है। 
 
2. उत्तरायण में शरीर त्याग का महत्व : भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया। माना जाता है कि उत्तरायण में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति को सद्गति मिलती है।
 
3. देवताओं का दिन प्रारंभ : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है। 
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4. कृष्‍ण और शुक्ल पक्ष : दक्षिणायन को पितरों का दिन माना जाता है जबकि धरती पर सूर्य का प्रकाश कम होने लगता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है। उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है।
 
5. देवयान : जगत में दो मार्ग है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। देवयान और पितृयान। देवयान में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।
 
6. पितृयान : पितृयान में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ चंद्रमा की ज्योत को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है।...लेकिन जिनके शुभकर्म नहीं हैं वे उक्त दोनों मार्गों में गमन नहीं करके अधोयोनि में गिर जाते हैं।

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