महाभारत के भीष्म से आखिर कौन परिचित नहीं है। ये वही गंगापुत्र भीष्म हैं जो अपनी जिंदगी के अंतिम क्षणो में कई दिनों तक बाणों की शैय्या में लेटे रहे थे।
लेकिन वे इतने दिनों तक बाणों की शैय्या में क्यों लेटे रहे, आखिर उनके शरीर से बाण निकाले भी तो जा सकते थे। आखिर क्या कहानी है इसके पीछे?आइए जानते हैं।
कौरवों और पांडवों के बीच छिड़े भीषण संग्राम में पांडवों के प्रलयंकारी योद्धा वीर अर्जुन ने शिखंडी का सहारा लेते हुए भीष्म पितामह को अपने शस्त्र रखने पर मजबूर कर दिया और इसी बीच श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने कई सौ बाण इकट्ठे भीष्म पर छोड़ दिए।
ये बाण भीष्म के शरीर में अंदर तक गड़ गए। इन बाणों ने गंगापुत्र भीष्म के हर अंग को छेदकर रख दिया। लेकिन इतने बाणों से छिद जाने के बाद भी भीष्म की मृत्यु नहीं हुई, क्योंकि उनका भाग्य कुछ अलग था।
भीष्म के शरशय्या पर लेटने की खबर फैलने पर कौरवों की सेना में हाहाकार मच जाता है। दोनों दलों के सैनिक और सेनापति युद्ध करना छोड़कर भीष्म के पास एकत्र हो जाते हैं। दोनों दलों के राजाओं से भीष्म कहते हैं, राजन्यगण। मेरा सिर नीचे लटक रहा है। मुझे उपयुक्त तकिया चाहिए। उनके एक आदेश पर तमाम राजा और योद्धा मूल्यवान और तरह-तरह के तकिए ले आते हैं।
किंतु भीष्म उनमें से एक को भी न लेकर मुस्कुराकर कहते हैं कि ये तकिए इस वीर शय्या के काम में आने योग्य नहीं हैं राजन। फिर वे अर्जुन की ओर देखकर कहते हैं, 'बेटा, तुम तो क्षत्रिय धर्म के विद्वान हो। क्या तुम मुझे उपयुक्त तकिया दे सकते हो?' आज्ञा पाते ही अर्जुन ने आंखों में आंसू लिए उनको अभिवादन कर भीष्म को बड़ी तेजी से ऐसे 3 बाण मारे, जो उनके ललाट को छेदते हुए पृथ्वी में जा लगे। बस, इस तरह सिर को सिरहाना मिल जाता है। इन बाणों का आधार मिल जाने से सिर के लटकते रहने की पीड़ा जाती रही। इतना सब कुछ होने के बावजूद भीष्म क्यों नहीं त्यागते हैं प्राण?
अगले पेज पर आखिर क्यों नहीं त्यागते भीष्म अपने प्राण...
सूर्य का उत्तरायण होना : लेकिन शरशय्या पर लेटने के बाद भी भीष्म प्राण क्यों नहीं त्यागते हैं, जबकि उनका पूरा शरीर तीर से छलनी हो जाता है फिर भी वे इच्छामृत्यु के कारण मृत्यु को प्राप्त नहीं होते हैं।
भीष्म यह भलीभांति जानते थे कि सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण त्यागने पर आत्मा को सद्गति मिलती है और वे पुन: अपने लोक जाकर मुक्त हो जाएंगे इसीलिए वे सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते हैं।
भीष्म ने बताया कि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छामृत्यु का वर प्राप्त है और वे तब तक शरीर नहीं छोड़ सकते जब तक कि वे चाहें, लेकिन 10वें दिन का सूर्य डूब चुका था।
भीष्म को ठीक करने के लिए शल्य चिकित्सक लाए जाते हैं, लेकिन वे उनको लौटा देते हैं और कहते हैं कि अब तो मेरा अंतिम समय आ गया है। यह सब व्यर्थ है। शरशय्या ही मेरी चिता है। अब मैं तो बस सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार कर रहा हूं।