हिन्दू धर्म को विश्व का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। हिन्दू शब्द की उत्पति भारत की प्रमुख सभ्यता सिन्धु घटी सभ्यता, प्रमुख नदी सिंधु नदी तथा भारत के प्रहरी हिमालय के नाम से मिलाकर मानी जाती है। इस धर्म को सनातन और वैदिक धर्म भी कहा जाता है। जनसंख्या के मामले में हिन्दू दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। जिसके अनुयायी एशिया के कई देशों में अधिक संख्या में पाए जाते हैं। नेपाल और भारत एक हिन्दु बहुल देश है।
उद्भव एवं विकास : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस धर्म की उत्पत्ति मावन की उत्पत्ति के पूर्व हुई थी परंतु विद्वानों के अनुसार इस धर्म का प्रारंभ स्वयंभुव मनु के काल में हुआ था। हालांकि ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इस धर्म की उत्पत्ति का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से पूर्व का माना जाता है। अनुमानीत 15 हजार ईसा पूर्व इस धर्म की उत्पत्ति हुई थी।
इस धर्म की स्थापना किसी एक व्यक्ति विशेष ने नहीं की है। कहते हैं कि जिन्होंने ऋग्वेद की रचना की उन ऋषियों और उनकी परंपरा के ऋषियों ने इस धर्म की स्थापना की है। जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अग्नि, आदित्य, वायु और अंगिरा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इनके साथ ही प्रारंभिक सप्तऋषियों का नाम लिया जाता है। ब्रह्म (ईश्वर) से सुनकर हजारों वर्ष पहले जिन्होंने वेद सुनाए, वही संस्थापक माने जाते हैं। हिन्दू धर्म का विकास वेद की वाचिक परंपरा का परिणाम है। ब्रह्मा और उनके पुत्रों, सप्तऋषियों, ऋषि बृहस्पति, ऋषि पराशर, वेदव्यास से लेकर आदि शंकराचार्य तक इस धर्म का निरंतर परिवर्तन और विकास होता रहा है।
स्वायंभुव मनु के काल से इस धर्म का प्रारंभ होता है। फिर क्रमश: वैवस्वत सहित अब तक 7 मनुओं के काल में हिन्दु धर्म की पुन: स्थापना का कार्य चलता रहा। श्रीराम के काल में गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि जैसे ऋषियों ने इस धर्म का आगे बढ़ाया, फिर श्रीकृष्ण, वेदव्यास और ऋषि पराशर ने इस धर्म को पुन: स्थापित किया। इसके बाद पतंजलि, आदि शंकराचार्य, रामानंद, रामानुज, कबीर, रविदास, नानक, तुलसीदास गोस्वामी, माधवाचार्य, महर्षि अरविंद, स्वामी प्रभुपाद, राजा राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, राजगोपालाचारी, श्रीसर्वपल्ली राधाकृष्णन, श्रीराम शर्मा आचार्य आदि ने इस धर्म के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
शाखाएं : हिन्दू धर्म वट वृक्ष के समान हैं जिसकी सैंकड़ों शाखाएं हैं। जितनी शाखाएं हैं उतने ही देवी, देवता, भगवान और ऋषि हैं और उन सभी देव-देवताओं को मानने वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है। सभी में अंतरविरोध होने के बावजूद सभी कुछ सिद्धांतों पर एकमत हैं। वैसे हिन्दू धर्म में त्रिदेवों को खास महत्व दिया गया है। ये त्रिदेव है ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ब्रह्मा को मानने वाले कम भी है परंतु वैदिक समाज के लोग उन्हें मानते हैं। विष्णु और महेश अर्थात शंकर को मानने वाले दो वर्गा में बंटे हैं- पहला वैष्णव और दूसरा वर्ग शैव है। दोनों ही संप्रदाय के देवी और देवता भिन्न है और इनकी पूजा पद्धति भी भिन्न है। देवियों को पूजने वाले को शाक्त संप्रदाय का माना जाता है। पंच देवों अर्थात सूर्य, विष्णु, दुर्गा, गणेश और शिव की पूजा करने वालों को स्मार्त संप्रदाय का माना जाता है। उक्त संप्रदायों के कई उपसंप्रदाय भी हैं। वैष्णव संप्रदाय के अंतर्गत ही विष्णु के अवतारों की पूजा होती है जैसे श्रीराम और श्रीकृष्ण सहित सभी 24 अवतारों की पूजा। इसी तरह शिव, दुर्गा आदि देवी और देवताओं के भी अवतार हैं।
अवधारणा एवं विशेषताएं : हिन्दू धर्म वेद पर आधारित धर्म है जो आत्मा की अमरता में विश्वास रखता है और यह कर्म सिद्धांत को मानता है। हिन्दू धर्मानुसार आत्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद अपने कर्मों के अनुसार मनुष्य योनि प्राप्त करता है। हिन्दू धर्म मानता है कि ईश्वर एक ही है परंतु दूसरे धर्मों की अपेक्षा हिन्दू धर्म में एकेश्वरवाद का सिद्धांत भिन्न है। यह धर्म चार पुरुषार्थों, चार आश्रमों और पंच ऋण का सिद्धांतों पर आधारित जीवन पद्धति पर जीवनयापन करने पर जोर देता है। मोक्ष को हिन्दू धर्म में हर व्यक्ति या आत्मा का अंतिम लक्ष्य माना गया है। यह धर्म सर्वधर्म समभाव, उदारता, परोपकार, सहअस्तित्व, सहिष्णुता, स्वीकार्यता की भावना पर जोर देता है।
हिन्दू धर्म प्रकृति और ब्रह्म, स्त्री या पुरुष को भिन्न नहीं मानता है। सभी आत्मरूप है। प्रकृति को आठ तत्वों और तीन गुणों वाली कहा गया है जिससे सृष्टि की रचना, उद्भव, विकास और संहार होता है। हिन्दू धर्म में ब्रह्मा को जन्मदाता, विष्णु को पालनहार और शिव को संहारक माना गया है। हिन्दू धर्म में शिव को सर्वोच्च देव मानाया गया है। इसीलिए उन्हें महादेव भी कहा जाता है।
हिन्दू धर्म वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास रखता है। अर्थात संपूर्ण मानव जाति एक ही कुटुंब की है। कोई छोटा-बड़ा, ऊंचा-नीचा नहीं है। हिन्दू धर्म में साकार और निराकार दोनों ही तरह की पूजा पद्धति है। अर्थात मूर्ति पूजा भी है और निराकार ब्रह्म की प्रार्थना भी है। हिन्दू उपासना पद्धति में प्रकृति और पुरुष की समान रूप से भागीदारी है। हिन्दू धर्म में देवियों का स्थान देवताओं से पहले रखा गया है। जैसे सरस्वती-ब्रह्मा, लक्ष्मी-विष्णु, उमा-शंकर, सीता-राम, राधे-कृष्ण।
महत्व : हिन्दू धर्म व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति पर विश्वास रखता है इसीलिए यह धर्म मोक्ष दर्शन पर आधारित धर्म है। इसके लिए योग, ध्यान, साधना, व्रत, भक्ति जैसी पद्धतियों का विस्तार से वर्णन मिलता है। यह धर्म जीवन जीने की कला सीखाता है। इसके लिए 64 कला और 16 प्रकार की विद्याओं का विस्तार से वेद और पुराणों में वर्णन मिलता है। यह धर्म उत्सवप्रिय धर्म है जहां पर पुण्यतिथि से ज्यादा महत्व जयंती पर दिया जाता है। यह धर्म अनुशासन और कर्तव्य पालन पर जोर देकर मानव को एक सभ्य मनुष्य बनाता है। इसीलिए 4 पुरुषार्थों और आश्रम के महत्व को समझाया गया है। प्रकृति से निकटता रखते हुए अभ्यास और जागरण इस धर्म का मूल है। हिन्दू धर्म में पंचयज्ञ, 16 सोलह संस्कार, संध्यावंदन, व्रत-उपवास, तीर्थ-मंदिर, स्नान, दान-पुण्य, त्योहार-पर्व, वेद-गीता पाठ आदि के अनुसार ही जीवन यापन करने का खास महत्व है।
खास बातें : इस धर्म का धर्मग्रंथ चार वेद है- ऋग, यजु, साम और अथर्व। उपनिषद और गीता वेदों का सार है। स्मृति और पुराणों को इतिहास ग्रंथ माना गया है। वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है। इसे भारत का षड्दर्शन कहते हैं। ये 6 षड्दर्शन हैं- 1. न्याय, 2. वैशेषिक, 3. मीमांसा, 4. सांख्य 5. वेदांत और 6. योग। 10 सिद्धांत प्रमुख है: 1. षष्ट कर्म का सिद्धांत, 2.पंच ऋण का सिद्धांत, 3. चार पुरुषार्थ का सिद्धांत, 4.आध्यात्मवाद का सिद्धांत, 5.आत्मा की अमरता का सिद्धांत, 6.ब्रह्मवाद का सिद्धांत, 7. चार आश्रम का सिद्धांत, 8. मोक्ष मार्ग का सिद्धांत, 9. व्रत और संध्यावंदन का सिद्धांत और 10. अवतारवाद का सिद्धांत।
उपसंहार : हिन्दू धर्म वास्तव में दुनिया का एक महत्वपूर्ण धर्म है जो जीवन जीने की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक विकास पर जोर देता है। यह एक बहुसंप्रदाय, बहुजाति, अनेक प्रार्थना, साधना और पूजा पद्धति, अनेक देवी-देवताओं, अनेक आध्यात्मिक मार्गों और अनेक दर्शनों से सजा धर्म है जो अपने मूल में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से एक ही है। यह धर्म हजारों वर्ष से अस्तित्व में है जबकि बीच में कई धर्म अपना अस्तित्व खो बैठे और नए धर्मों की उत्पत्ति होती रही परंतु हिन्दू धर्म निरंतर है। पहले इसे सनातन धर्म ही कहा जाता था जो वैदिक धर्म पर ही आधारित है। वैदिक धर्म ही सनातन धर्म है जिसकी उत्पत्ति ऋग्वेद से हुई है। ऋग्वेद संसार की प्रथम पुस्तक है जिसमें हिन्दू धर्म का दर्शन, सिद्धांत और प्राचीन इतिहास मौजूद है।