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(कालभैरव अष्टमी)
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  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
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गीता के संदेश, जानिए सरल भाषा में

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डॉ. रामकृष्ण सिंगी


 
गीता भारतीय दर्शन का सार ग्रंथ है। गीता ज्ञान-गीत है। गीता अत्यंत सरल और सरस श्लोकों में आध्यात्मिक चिंतन के साथ-साथ लोक-व्यवहार के निर्देश प्रस्तुत करने वाली एक ऐसी लघु पुस्तिका है, जो तनावरहित जीवन जीने की कला सिखाती है, जीवन-मृत्यु के चक्र का स्पष्टीकरण देती है, ईश्वर के प्रति अपने-अपने तरीके से निष्ठा रखने का मंत्र देती है और प्रतीक रूप में यह समझा देती है कि इस संपूर्ण विश्व की सृष्टि और संचालन के पीछे क्या विज्ञान है तथा इस समष्टि में हमारी व्यक्तिगत हैसियत क्या है।
 


यह जानना हमारे लिए कम महत्वपूर्ण नहीं है कि इस संपूर्ण विस्तृत जगत में एवं अनंत कालचक्र में हमारी हस्ती एक रजकण के बराबर होने के बावजूद उस परम सत्ता की एक किरण, एक दिव्य ज्योति हम में विद्यमान है। उसी आस्था और विश्वास के साथ हमें अपना लोक व्यवहार करते हुए अपने जीवन को दिव्य बनाने की ओर प्रयत्नशील रहना है। 
 
सार रूप में गीता के मुख्य संदेश निम्नानुसार हैं :-
 
* पुनर्जन्म- हर प्राणी जन्म-मरण के शाश्वत चक्र में घूमता है। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु होगी और जिसकी मृत्यु हुई है, उसका पुनर्जन्म होगा। 
 
* ईश्वर- एक अदृश्य और अकथनीय शक्ति है जिससे संसार की उत्पत्ति, पालन एवं लय होता है। समय-समय पर वह भी मनुष्य रूप में अवतार धारण करता है।
 
* आत्मा- एक अजर-अमर तत्व है, जो ईश्वर के अंश के रूप में प्रत्येक प्राणी के शरीर में उपस्‍थित है।
 
* कर्मसिद्धांत- प्रत्येक प्राणी को निरंतर कार्यशील रहना चाहिए। अपने जीवन निर्वाह के लिए और सृष्टि चक्र के संचालन के लिए आवश्यक है कि नियति द्वारा निर्धारित हम अपने कार्य में परिणाम की चिंता किए बगैर संलग्न रहें। यही 'कर्म-योग' है।
 
* त्रिगुण की संकल्पना- संसार के प्रत्येक कार्य, विचार और धारणा सत, रज, तम में वर्गीकृत किए जा सकते हैं, जो उनकी उत्कृष्टता या निकृष्टता की कसौटियां हैं। हमें चैतन्य होकर उत्कृष्टता का वरण करना चाहिए। 
 
* सभी प्राणियों से मैत्रीभाव- यह भी आवश्यक है कि हम अपने आसपास उपस्थित हमारे सहजीवी प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव एवं करुणा का भाव रखें और ऐसा कोई कार्य न करें जिससे किसी को असुविधा या कष्ट हो। यही हमारा सामाजिक धर्म है। 

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