Karamnasa nadi : भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां पर हजारों नदियां बहती हैं। लगभग सभी नदियों को पवित्र माना जाता है। कई नदियां तो आदिकाल से बहती आ रही है। पौराणिक ग्रंथों में उनमें से कई नदियों को देवी माना गया है परंतु भारत में एक ऐसी नदी भी जिसे अपवित्र माना जाता है और जिसे छूने से भी लोग डरते हैं, जानें कारण।
क्यों डरते हैं लोग इस नदी से?
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आपने वैतरणी नदी के बारे में तो सुना ही होगा जो मरने के बाद आदमी को पार करना होती है, जिसे अपवित्र नदी माना गया है।
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बस इसी तरह की एक नदी धरती पर भी है। किंवदंतियों आख्यानों के अनुसार इस नदी के जल को को जो भी छूता है वह अपवित्र हो जाता है।
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इसे व्यक्ति के सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं और बस पाप ही रह जाते हैं।
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इस नदी के बारे में कहा जाता है कि काले सांप का काटा बच सकता है, हलाहल जहर को पीने से मौत को रोका जा सकता है, लेकिन जिस पौधे को यह न दी छू ले तो समझो उसका मरना तय है। वह फिर कभी हरा नहीं हो सकता।
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जब भी बारिश होती है तो नदी में यदि एक बार बाढ़ आ जाए तो फिर यह किसी मनुष्य की बलि लेकर ही लौटती है।
कर्मनाश नदी करती है कर्मों का नाश:
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इस नदी का नाम है कर्मनाश नदी जिसे छूने से व्यक्ति के कर्मों का नाश हो जाता है।
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कर्मों के नाश होने से व्यक्ति के पुण्य कर्मों का नाश भी हो जाता है।
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इसे काम नष्ट करने वाली या बिगाड़ने वाली भी कहा जाता है।
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यह गुरुड़ पुराण में बताई गई नदी वैतरणी नदी की तरह है जिसे पाप की नदी कहा गया है और जिसे स्वर्ग जाने से पहले पार करना होता है।
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प्रचलित मान्यता के अनुसार कर्मनाशा को हर साल प्राणों की बलि चाहिए। बिना बलि लिए उसकी बाढ़ उतरती ही नहीं।
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कर्मनाशा दुनिया की पहली ऐसी नदी है जिसके जल को अछूत माना जाता है।
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ऐसी मान्यता है कि जो भी इस नदी के जल को छूता है वो अपवित्र हो जाता है।
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इतना ही नहीं, ये भी कहा जाता है कि इस नदी के पानी से खेती करने से सारी फसल बर्बाद हो जाती हैं।
कहां पर बहती है कर्मनाशा नदी:
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यह नदी बिहार की प्रमुख नदियों में से एक है।
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यह गंगा नदी की एक उपनदी है।
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बिहार के कैमूर ज़िले से निकलकर यह बिहार व उत्तर प्रदेश की सीमा निर्धारित करती है।
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कर्मनाशा नदी पर राज दरी देव दरी जलप्रपात है, जिसकी ऊंचाई 58 मीटर है।
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इस नदी की लंबाई 162 किलोमीटर है। यह यूपी और बिहार दोनों क्षेत्र में बहती है।
कैसे हुई उत्पत्ति इस नदी की?
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देवताओं और विश्वामित्र के युद्ध के बीच त्रिशंकु धरती और आसमान में उलटे लटक रहे थे।
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इस दौरान उनके मुंह से तेजी से लार टपकने लगी और यही लार नदी के तौर पर धरती पर प्रकट हुई।