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भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं गणेश

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ललि‍त गर्ग

गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, वे सात्विक देवता हैं और विघ्नहर्ता हैं। वे न केवल  भारतीय संस्कृति एवं जीवनशैली के कण-कण में व्याप्त है बल्कि विदेशों में भी  घर-कारों-कार्यालयों एवं उत्पाद केंद्रों में विद्यमान हैं। हर तरफ गणेश ही गणेश छाए हुए हैं।
 

 
मनुष्य के दैनिक कार्यों में सफलता, सुख-समृद्धि की कामना, बुद्धि एवं ज्ञान के विकास एवं  किसी भी मंगल कार्य को निर्विघ्न संपन्न करने हेतु गणेशजी को ही सर्वप्रथम पूजा जाता है,  याद किया जाता है। प्रथम देव होने के साथ-साथ उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है, लोकनायक  का चरित्र है। 
 
गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। ऐसे सार्वभौमिक एवं सार्वदैशिक लोकप्रियता वाले देव का  जन्मोत्सव भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संपूर्ण दुनिया में उमंग एवं हर्षोल्लास से  मनाया जाता है। 
 
गणेशोत्सव हिन्दुओं का एक उत्सव है। महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। हजारों  स्थानों पर भारतीय कला और संस्कृति की भिन्न-भिन्न गणेश-छवियों के दर्शन होते हैं। रात्रि में  सर्वत्र रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। अंतिम दिन बड़ी धूमधाम से गणेश-प्रतिमाओं का  विसर्जन नदी तटों, सरोवरों अथवा समुद्र में किया जाता है। दिन-प्रतिदिन गणेश चतुर्थी को  अधिक से अधिक भव्यता से मनाने का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।
 
हिन्दुओं में गणेशजी के जन्म के विषय में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। वराह पुराण के  अनुसार स्वयं शिव ने पंचतत्वों को मिलाकर गणेश का निर्माण बहुत तन्मयता से किया जिससे  वे अत्यंत सुन्दर और आकर्षक बने तो देवताओं में खलबली मच गई। स्थिति को भांपकर  शिवजी ने गणेश के पेट का आकार बढ़ा दिया और सिर को गजानन की आकृति का कर दिया  ताकि उनके सौन्दर्य और आकर्षण को कम किया जा सके। 

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शिव पुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने उबटन के मैल से एक पुतला बनाया  और उसमें जीवन डाल दिया। इसके उपरांत उन्होंने इस जीवधारी पुतले को द्वार पर प्रहरी के  रूप में बैठा दिया और उसे आदेश दिया कि वह किसी भी व्यक्ति को अंदर न आने दे। इसके  बाद वे स्नान करने लग गईं। 
 
संयोगवश कुछ ही समय बाद शिव उधर आ निकले। उनसे सर्वथा अपरिचित गणेश ने शिव को  भी अंदर जाने से रोक दिया। इस पर शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने त्रिशूल से  गणेश का मस्तक काट दिया। 
 
जब पार्वती ने यह देखा तो वे बहुत दुखी हुईं। तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शिव ने एक  हाथी के बच्चे का सिर गणेश के धड़ से लगाकर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। तभी से गणेश,  'गजानन' कहलाए। लेकिन बालक की आकृति से पार्वती बहुत दुखी हुईं तो सभी देवताओं ने  उन्हें आशीर्वाद और अतुलनीय उपहार भेंट किए। उन्हें प्रथम देव के रूप में सभी अधिकार प्रदत्त  किए। इंद्र ने अंकुश, वरुण ने पाश, ब्रह्मा ने अमरत्व, लक्ष्मी ने ऋद्धि-सिद्धि और सरस्वती ने  समस्त विद्याएं प्रदान कर उन्हें देवताओं में सर्वोपरि बना दिया।
 
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गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। प्राचीनकाल से हिन्दू समाज कोई भी कार्य निर्विघ्न  संपन्न करने के लिए उसका प्रारंभ गणपति की पूजा से ही करता आ रहा है। भारतीय संस्कृति  एक ईश्वर की विशाल कल्पना के साथ अनेकानेक देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से  फलती-फूलती रही है। सब देवताओं की पूजा से प्रथम गणपति की पूजा का विधान है। 
 
दरअसल, गणेश सुख-समृद्धि, वैभव एवं आनंद के अधिष्ठाता हैं। बड़े एवं साधारण सभी प्रकार  के लौकिक कार्यों का आरंभ उनके दिव्य स्वरूप का स्मरण करके किया जाता है। व्यापारी अपने  बही-खातों पर 'श्री गणेशाय नम:' लिखकर नए वर्ष का आरंभ करते हैं। प्रत्येक कार्य का शुभारंभ  गणपति पूजन एवं गणेश वंदना से किया जाता है। विवाह का मांगलिक अवसर हो या नए घर  का शिलान्यास, मंदिर में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा का उत्सव हो या जीवन में षोड्स संस्कार का  प्रसंग- गणपति का स्मरण सर्वप्रथम किया जाता है। 
 
स्कंद पुराण के अनुसार जो भक्तिपूर्वक गणेशजी की पूजा-अर्चना करता है, उसके सम्मुख विघ्न  कभी नहीं आते। गणपति, गणेश अथवा विनायक सभी शब्दों का अर्थ है- देवताओं का स्वामी  अथवा अग्रणी। भिन्न-भिन्न स्थानों पर गणेशजी के अलग-अलग रूपों का वर्णन है, परंतु सब  जगह एकमत से गणेशजी की विघ्नहर्ता शक्ति को स्वीकार किया गया है।
 
गणेशजी की आकृति विचित्र है, किंतु इस आकृति के आध्यात्मिक संकेतों के रहस्य को यदि  समझने का प्रयास किया जाए तो सनातन लाभ प्राप्त हो सकता है, क्योंकि गणेश अर्थात शिव  पुत्र अर्थात शिवत्व प्राप्त करना होगा अन्यथा क्षेम एवं लाभ की कामना सफल नहीं होगी।
 
गजानन गणेश की व्याख्या करें तो ज्ञात होगा कि 'गज' दो व्यंजनों से बना है। 'ज' जन्म  अथवा उद्गम का प्रतीक है तो 'ग' प्रतीक है गति और गंतव्य का। अर्थात 'गज' शब्द उत्पत्ति  और अंत का संकेत देता है- जहां से आए हो वहीं जाओगे। जो जन्म है वही मृत्यु भी है। ब्रह्म  और जगत के यथार्थ को बनाने वाला ही गजानन गणेश है।
 
गणेशजी की संपूर्ण शारीरिक रचना के पीछे भगवान शिव की व्यापक सोच रही है। एक कुशल,  न्यायप्रिय एवं सशक्त शासक एवं देव के समस्त गुण उनमें समाहित किए गए हैं। गणेशजी का  गज मस्तक है अर्थात वे बुद्धि के देवता हैं। वे विवेकशील हैं। उनकी स्मरण शक्ति अत्यंत  कुशाग्र है। हाथी की भांति उनकी प्रवृत्ति-प्रेरणा का उद्गम स्थान धीर, गंभीर, शांत और स्थिर  चेतना में है। हाथी की आंखें अपेक्षाकृत बहुत छोटी होती हैं और उन आंखों के भावों को समझ  पाना बहुत कठिन होता है।
 
दरअसल, गणेश तत्ववेत्ता के आदर्श रूप हैं। गण के नेता में गुरुता और गंभीरता होनी चाहिए।  उनके स्थूल शरीर में वह गुरुता निहित है। उनका विशाल शरीर सदैव सतर्क रहने तथा सभी  परिस्थितियों एवं कठिनाइयों का सामना करने के लिए तत्पर रहने की भी प्रेरणा देता है। 
 
उनका लंबोदर रूप दूसरों की बातों की गोपनीयता, बुराइयों, कमजोरियों को स्वयं में समाविष्ट  कर लेने की शिक्षा देता है तथा सभी प्रकार की निंदा, आलोचना को अपने उदर में रखकर अपने  कर्तव्य पथ पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है। छोटा मुख कम, तर्कपूर्ण तथा मृदुभाषी होने का  द्योतक है। 
 
गणेश का व्यक्तित्व रहस्यमय है जिसे पढ़ एवं समझ पाना हर किसी के लिए संभव नहीं है।  शासक भी वही सफल होता है जिसके मनोभावों को पढ़ा और समझा न जा सके। इस प्रकार  अच्छा शासक वही होता है, जो दूसरों के मन को तो अच्छी तरह से पढ़ ले, परंतु उसके मन  को कोई न समझ सके। 
 
दरअसल, वे शौर्य, साहस तथा नेतृत्व के भी प्रतीक हैं। उनके हेरंब रूप में युद्धप्रियता का,  विनायक रूप में यक्षों जैसी विकरालता का और विघ्नेश्वर रूप में लोकरंजक एवं परोपकारी  स्वरूप का दर्शन होता है। गण का अर्थ है समूह। गणेश समूह के स्वामी हैं इसीलिए उन्हें  गणाध्यक्ष, लोकनायक, गणपति आदि नामों से पुकारा जाता है।
 
गज मुख पर कान भी इस बात के प्रतीक हैं कि शासक जनता की बात को सुनने के लिए  कान सदैव खुले रखे। यदि शासक जनता की ओर से अपने कान बंद कर लेगा तो वह कभी  सफल नहीं हो सकेगा। शासक को हाथी की ही भांति शक्तिशाली एवं स्वाभिमानी होना चाहिए।  अपने एवं परिवार के पोषण के लिए शासक को न तो किसी पर निर्भर रहना चाहिए और न ही  उसकी आय के स्रोत ज्ञात होने चाहिए। हाथी बिना झुके ही अपनी सूंड की सहायता से सब कुछ  उठाकर अपना पोषण कर सकता है। शासक को किसी भी परिस्थिति में दूसरों के सामने झुकना  नहीं चाहिए।
 
गणेशजी सात्विक देवता हैं। उनके पैर छोटे हैं, जो कर्मेन्द्रिय के सूचक और सत्व गुणों के  प्रतीक हैं। मूषक गणपति का वाहन है, जो चंचलता एवं दूसरों की छिद्रान्वेषण की प्रवृत्ति को  नियंत्रित करने का प्रेरक है। दरअसल, मूषक अत्यंत छोटा एवं क्षुद्र प्राणी है। इसे अपना वाहन  बनाकर गणपति ने उसकी गरिमा को बढ़ाया है और यह संदेश दिया है कि गणनायक को तुच्छ  से तुच्छ व्यक्ति के प्रति भी स्नेहभाव रखना चाहिए। गणेशजी की 4 भुजाएं 4 प्रकार के भक्तों,  4 प्रकार की सृष्टि और 4 पुरुषार्थों का ज्ञान कराती है।
 
गणेशजी को प्रथम लिपिकार माना जाता है। उन्होंने ही देवताओं की प्रार्थना पर वेदव्यासजी  द्वारा रचित 'महाभारत' को लिपिबद्ध किया था। जैन एवं बौद्ध धर्मों में भी गणेश पूजा का  विधान है। गणेश को हिन्दू संस्कृति में आदिदेव भी माना गया है। 
 
अनंतकाल से अनेक नामों से गणेश दुख, भय, चिंता इत्यादि विघ्न के हरणकर्ता के रूप में  पूजित होकर मानवों का संताप हरते रहे हैं। वर्तमान काल में स्वतंत्रता की रक्षा, राष्ट्रीय चेतना,  भावनात्मक एकता और अखंडता की रक्षा के लिए गणेशजी की पूजा और गणेश चतुर्थी के पर्व  को उत्साहपूर्वक मनाने का अपना विशेष महत्व है।
 
गणेशजी को शुद्ध घी, गुड़ और गेहूं के लड्डू- मोदक बहुत प्रिय हैं। ये प्रसन्नता अथवा मुदित  चित्त के प्रतीक हैं। ये तीनों चीजें सात्विक एवं स्निग्ध हैं अर्थात उत्तम आहार हैं। सात्विक  आहार बुद्धि में स्थिरता लाता है। उनका उदर बहुत लंबा है। 
 
ऋद्धि-सिद्धि गणेशजी की पत्नियां हैं। वे प्रजापति विश्वकर्ता की पुत्रियां हैं। गणेशजी की पूजा  यदि विधिवत की जाए तो इनकी पतिव्रता पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में  सुख-शांति-समृद्धि और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती हैं। सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से  'लाभ' नाम के शोभा संपन्न 2 पुत्र हुए। जहां भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं तो उनकी पत्नियां  ऋद्धि-सिद्धि यशस्वी, वैभवशाली व प्रतिष्ठित बनाने वाली होती हैं, वहीं शुभ-लाभ हर  सुख-सौभाग्य देने के साथ उसे स्थायी और सुरक्षित रखते हैं। 
 
जन-जन के कल्याण, धर्म के सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने एवं सुख-समृद्धि-निर्विघ्न  शासन व्यवस्था स्थापित करने के कारण मानव जाति सदा उनकी ऋणी रहेगी। आज के  शासनकर्ताओं को गणेश के पदचिन्हों पर चलने की जरूरत है।

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