हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार सात पाताल होते हैं। पाताल लोक में जाने के लिए धरती पर कई रास्ते बताए गए हैं। उन्हीं में से एक रास्ता है भारत के मध्यप्रदेश में बहने वाली नर्मदा नदी के भीतर। नर्मदा नदी को इसीलिए पाताल लोक की नदी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस नदी के भीतर कई रास्ते हैं, जिनसे पाताल लोक पहुंचा जा सकता है।
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नर्मदा नदी : नर्मदा नदी मध्यप्रदेश के अमरकंटक से निकलकर ये गुजरात खंभात की खड़ी में यह मिल जाती है। अमरकंटक में मैखल पर्वत पर कोटितार्थ मां नर्मदा का उद्गम स्थल है। देश की सभी नदियों की अपेक्षा नर्मदा विपरीत दिशा में बहती है। नेमावर के आगे ओंकारेश्वर होते हुए ये नदी गुजरात में प्रवेश करके खम्भात की खाड़ी में इसका विलय हो जाता है।
नर्मदा का नाभि स्थल है पाताल लोक का रास्ता : भारतीय पुराणों के अनुसार नर्मदा नदी को पाताल की नदी माना जाता है। यह भी जनश्रुति प्रचलित है कि नर्मदा के जल को बांधने के प्रयास किया गया तो भविष्य में प्रलय होगी। इसका जल पाताल में समाकर धरती को भूकंपों से पाट देगा। नर्मदापुरम से आगे बहते हुए यह नदी नेमावर में बहती है। नेमावर नगर में नर्मदा नदी का नाभि स्थल है।
पाताल लोक : पाताल लोक को नागलोक भी कहा जाता है। पाताल लोक 7 माने गए हैं। ये हैं- अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, और पाताल। पाताल लोक के राजा वासुकि नाग हैं।
आपने धरती पर ऐसे कई स्थानों को देखा या उनके बारे में सुना होगा जिनके नाम के आगे पाताल लगा हुआ है, जैसे पातालकोट, पातालपानी, पातालद्वार, पाताल भैरवी, पाताल दुर्ग, देवलोक पाताल भुवनेश्वर आदि। नर्मदा नदी को भी पाताल नदी कहा जाता है। नदी के भीतर भी ऐसे कई स्थान होते हैं, जहां से पाताल लोक जाया जा सकता है। समुद्र में भी ऐसे कई रास्ते हैं, जहां से पाताल लोक पहुंचा जा सकता है। धरती के 75 प्रतिशत भाग पर तो जल ही है। पाताल लोक कोई कल्पना नहीं। पुराणों में इसका विस्तार से वर्णन मिलता है।
कहते हैं कि ऐसी कई गुफाएं हैं, जहां से पाताल लोक जाया जा सकता है। ऐसी गुफाओं का एक सिरा तो दिखता है लेकिन दूसरा कहां खत्म होता है, इसका किसी को पता नहीं। कहते हैं कि जोधपुर के पास भी ऐसी गुफाएं हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका दूसरा सिरा आज तक किसी ने नहीं खोजा। इसके अलावा पिथौरागढ़ में भी हैं पाताल भुवनेश्वर गुफाएं। यहां पर अंधेरी गुफा में देवी-देवताओं की सैकड़ों मूर्तियों के साथ ही एक ऐसा खंभा है, जो लगातार बढ़ रहा है। बंगाल की खाड़ी के आसपास नागलोक होने का जिक्र है। यहां नाग संप्रदाय भी रहता था।
समुद्र तटीय और रेगिस्तानी इलाके थे पाताल : प्राचीनकाल में समुद्र के तटवर्ती इलाके और रेगिस्तानी क्षेत्र को पाताल कहा जाता था। इतिहासकार मानते हैं कि वैदिक काल में धरती के तटवर्ती इलाके और खाड़ी देश को पाताल में माना जाता था। राजा बलि को जिस पाताल लोक का राजा बनाया गया था उसे आजकल सऊदी अरब का क्षेत्र कहा जाता है। माना जाता है कि मक्का क्षेत्र का राजा बलि ही था और उसी ने शुक्राचार्य के साथ रहकर मक्का मंदिर बनाया था। हालांकि यह शोध का विषय है।
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माना जाता है कि जब देवताओं ने दैत्यों का नाश कर अमृतपान किया था तब उन्होंने अमृत पीकर उसका अवशिष्ट भाग पाताल में ही रख दिया था अत: तभी से वहां जल का आहार करने वाली असुर अग्नि सदा उद्दीप्त रहती है। वह अग्नि अपने देवताओं से नियंत्रित रहती है और वह अग्नि अपने स्थान के आस-पास नहीं फैलती।
इसी कारण धरती के अंदर अग्नि है अर्थात अमृतमय सोम (जल) की हानि और वृद्धि निरंतर दिखाई पड़ती है। सूर्य की किरणों से मृतप्राय पाताल निवासी चन्द्रमा की अमृतमयी किरणों से पुन: जी उठते हैं।