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(चतुर्दशी तिथि)
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सियाराममय सब जग जानी

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हिंदू समाज ही नहीं वरन्‌ जनसामान्य के लिए परंपराओं, आदर्शों और ऐसी मान्यताओं, मर्यादाओं की हर समय जरूरत होती है, जो उसे लोकहित की ओर प्रवृत्त करें। इसके लिए जरूरी है कि लोकहित की ओर प्रवृत्त करने वाला नायक इतना प्रासंगिक हो कि वह मनुष्य को कभी भी अकेला न रहने दे।
दशरथनंदन केवल 'निर्बल के बल राम' नहीं हैं, जिन्हें मनुष्य सोते, जागते हँसते, रोते, खाते-पीते और यहाँ तक कि मरने के साथ तक याद करता है। इसलिए भगवान राम मात्र आराध्य देव नहीं, एक पूज्यनीय स्वरूप नहीं हैं, वरन्‌ वाल्मीकि के ऐसे महानायक हैं, जो कि लोगों में कहीं भी, कभी भी दोष नहीं देखते।
 
उनके घर-परिवार का दायरा अपने महल, अयोध्या तक सीमित नहीं था, इसलिए वे बंदरों और भालुओं जैसे छोटे समझे जाने वाले जीवों को भी अपना सके। इसका कारण यही है कि राम का सारा जीवन दूसरों का दुःख हरने और छोटों को सदा संतुष्ट रखने में बीता।
 
आज के संदर्भ में राम का नाम उन विचारों का समग्र रूप है जो कि किसी भी मानव को अलौकिक चरित्र बना देने की क्षमता रखता है। मानव से देवता बनने की शुरुआत का नाम ही राम है। उनके नाम को रखते हुए मुनि वशिष्ठ ने बताया था कि राम एक ऐसा नाम है, जो कि सभी लोगों को शांति, सुख से भर सकता है। वे एक ऐसे राजा थे, जिसने परिजनों, पुरजनों के सुखों को सर्वाधिक महत्व दिया।

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वाल्मीकि की 'रामायण' और तुलसी की 'रामचरित्‌ मानस' तक में इस नाम को सन्मार्ग पर ले जाने वाला बताया। हिन्दी के महाकवि 'निराला' ने उन्हें शक्ति का पुजारी निरुपित किया। गाँधी का दिन भी रामधुन के बिना शुरू नहीं होता था। उनके लिए राम जीवन को यथासंभव निस्पृहता से जीने का नाम था, जिसे उन्होंने अपने-अपने स्तर पर आत्मसात किया था।

लोगों के लिए राम एक ऐसे सगुण साकार स्वरूप हैं, जिसकी जरूरत उन्हें हर दिन, हर क्षण पड़ती रहती है। साथ ही, यह एक ऐसी दृष्टि है, विलक्षण विशेषता है, जिसकी हमारे जीवन में प्रासंगिकता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।

बस जरूरी यही है कि हम राम के मर्म को जीवन में आत्मसात करने की शुरुआत करें और बाकी सब उसी पर छोड दें, जो कि पर्व के रूप में हमारे सामने आता है और हमें प्रेरित करता है कि राम के नाम को जानने की सार्थकता को जीवन में उतार लें, यही राम के मर्म को जानने की सच्ची भक्ति होगी।

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