- पं. विशाल दयानंद शास्त्री
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव मनुष्य के सभी कष्टों एवं पापों को हरने वाले हैं। सांसरिक कष्टों से एकमात्र भगवान शिव ही मुक्ति दिला सकते हैं। इस कारण प्रत्येक हिन्दू मास के अंतिम दिन भगवान शिव की पूजा करके जाने-अनजाने में किए हुए पाप कर्म के लिए क्षमा मांगने और आने वाले मास में भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का प्रावधान है।
शास्त्रों के अनुसार, शुद्धि एवं मुक्ति के लिए रात्रि के निशीथ काल में की गई साधना सर्वाधिक फलदायक होती है। अत: इस दिन रात्रि जागरण करके निशीथ काल में भगवान शिव की साधना एवं पूजा करने का अत्यधिक महत्व है।
महाशिवरात्रि वर्ष के अंत में आती है अत: इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है एवं इस दिन पूरे वर्ष में हुई त्रुटियों के लिए भगवान शंकर से क्षमायाचना की जाती है तथा आने वाले वर्ष में उन्नति एवं सद्गुणों के विकास के लिए प्रार्थना की जाती है।
महाशिवरात्रि का महाउत्सव फाल्गुन मास की त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर ही भोलेनाथ और माता पार्वती विवाह के पावन सूत्र में बंधे थे। इस दिन महादेव ने कालकूट नाम का विष पान कर अपने कंठ में रख लिया था। यह विष सागर मंथन में निकला था। शिवरात्रि के ही दिन बहुत समय पहले एक शिकारी को दर्शन देकर उसे पापों से मुक्त किया था।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष में बारह शिवरात्रियां होतीं हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर एवं मां पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था तथा इसी दिन प्रथम शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है।
इस दिन शिव भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं, भगवान शिव का अभिषेक करते हैं तथा पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हैं। भगवान शिव सब देवों में वृहद हैं, सर्वत्र समरूप में स्थित एवं व्यापक हैं। इस कारण वे ही सबकी आत्मा हैं। भगवान शिव निष्काल एवं निराकार हैं। भगवान शिव साक्षात ब्रह्म का प्रतीक है तथा शिवलिंग भगवान शंकर के ब्रह्म तत्व का बोध करता है। इसलिए भगवान शिव की पूजा में निष्काल लिंग का प्रयोग किया जाता है।
सारा चराचर जगत बिन्दु नाद स्वरूप है। बिन्दु देव है एवं नाद शिव इन दोनों का संयुक्त रूप ही शिवलिंग है। बिन्दु रूपी उमा देवी माता है तथा नाद स्वरूप भगवान शिव पिता हैं। जो इनकी पूजा सेवा करता है उस पुत्र पर इन दोनों माता-पिता की अधिकाधिक कृपा बढ़ती रहती है। वह पूजक पर कृपा करके उसे अतिरिक्त ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
आंतरिक आनंद की प्राप्ति के लिए शिवलिंग को माता-पिता के स्वरूप मानकर उसकी सदैव पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव प्रत्येक मनुष्य के अंत:करण में स्थित अव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान तथा प्रकृति मनुष्य की सुव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान है। नम: शिवाय: पंचतत्वमक मंत्र है इसे शिव पंचक्षरी मंत्र कहते हैं। इस पंचक्षरी मंत्र के जप से ही मनुष्य सम्पूर्ण सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है।
इस मंत्र के आदि में ॐ लगाकर ही सदा इसके जप करना चाहिए। भगवान शिव का निरंतर चिंतन करते हुए इस मंत्र का जाप करें। सदा सब पर अनुग्रह करने वाले भगवान शिव का बारम्बार स्मरण करते हुए पूर्वाभिमुख होकर पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें।
भक्त की पूजा से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। शिव भक्त जितना जितना भगवान शिव के पंचक्षरी मंत्र का जप कर लेता है उतना ही उसके अंतकरण की शुद्धि होती जाती है एवं वह अपने अंतकरण में स्थित अव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान के रूप मे विराजमान भगवान शिव के समीप होता जाता है। उसके दरिद्रता, रोग, दुख एवं शत्रुजनित पीड़ा एवं कष्टों का अंत हो जाता है एवं उसे परम आनंद की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव की पूजा आराधना की विधि बहुत सरल मानी जाती है। माना जाता है कि शिव को यदि सच्चे मन से याद कर लिया जाए तो शिव प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा में ज्यादा ताम-झाम की जरूरत नहीं होती। ये केवल जलाभिषेक, बिल्वपत्रों को चढ़ाने और रात्रि भर इनका जागरण करने मात्र से मेहरबान हो जाते हैं।