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मां त्रिपुर सुंदरी के बारे में जानिए 10 विशेष बातें, पूजा से मिलेगा सभी तरह का सुख

हमें फॉलो करें मां त्रिपुर सुंदरी के बारे में जानिए 10 विशेष बातें, पूजा से मिलेगा सभी तरह का सुख
, शनिवार, 17 दिसंबर 2022 (14:39 IST)
Shri tripura sundari jayanti 2022: पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तिथि के दिन मां त्रिपुरसुंदरी की जयंती मनाई जाती है। त्रिपुरसुंदरी को 10 महाविद्याओं (10 Mahavidya) में से एक सौम्य कोटि की माता माना जाता है। मां त्रिपुर सुंदरी को महात्रिपुरसुंदरी, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलेश्वरी, ललितागौरी और राजराजेश्वरी भी कहा जाता है।
 
1. पहला शक्तिपीठ : भारतीय राज्य त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है माना जाता है कि यहां माता के धारण किए हुए वस्त्र गिरे थे। त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है।
 
2. दूसरा शक्तिपीठ : दक्षिणी-त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। यहां सती के दक्षिण 'पाद' का निपात हुआ था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुंदरी तथा शिव त्रिपुरेश हैं। इस पीठ स्थान को 'कूर्भपीठ' भी कहते हैं।
 
3. माता के अन्य नाम : देवी ललिता को त्रिपुर सुंदरी भी कहते हैं। मां त्रिपुर सुंदरी को महात्रिपुरसुंदरी, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलेश्वरी, ललितागौरी और राजराजेश्वरी भी कहा जाता है। षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति है। इनमें षोडश कलाएं पूर्ण है इसलिए षोडशी भी कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
 
4. देवी का स्वरूप : इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। 
 
5. त्रिपुर सुंदरी या ललिता माता का मंत्र : दो मंत्र है। रूद्राक्ष माला से दस माला जप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
 
- 'ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:'
- 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।'
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6. ललिता देवी की साधना : ललिता माता की पूजा-अर्चना, व्रत एवं साधना मनुष्य को शक्ति प्रदान करते हैं। ललिता देवी की साधान से समृद्धि की प्राप्त होती है। दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है। इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है तथा ललितोपाख्यान, ललितासहस्रनाम, ललितात्रिशती का पाठ किया जाता है। 
 
7. इस तरह नाम हुआ ललिता देवी : देवी ललिता आदि शक्ति का वर्णन देवी पुराण में प्राप्त होता है। भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा। 
 
8. माता की जन्म कथा : एक अन्य कथा अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव तब होता है जब भगवान द्वारा छोडे गए चक्र से पाताल समाप्त होने लगा। इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि भी घबरा जाते हैं और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है। तब सभी ऋषि माता ललिता देवी की उपासना करने लगते हैं। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी जी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं। सृष्टि पुन: नवजीवन को पाती है।
 
9. माता पूजा : मता की पूजा करने से वे सभी प्रकार के सुख और भोग को प्रदान करती है। वे समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं। इनकी साधना से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने शिव जी से मोक्ष और गर्भवास तथा मृत्यु के असहनीय दर्द से मनुष्य के मुक्ति के लिए उपाय पूछा, तब भगवान शिव ने ​10 महाविद्याओं में त्रिपुर सुंदरी को प्रकट किया।
 
10. पूजा और साधना का समय : माता की सामान्य पूजा दिन में अभिजित या किसी शुभ मुहूर्त में होती है और माता की तांत्रिक पूजा या साधना निशिता काल में होती है। 

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