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मांगलिक कार्यों में सफेद कपड़े स्त्रियों के लिए क्यों वर्जित?

हमें फॉलो करें मांगलिक कार्यों में सफेद कपड़े स्त्रियों के लिए क्यों वर्जित?
, सोमवार, 13 जुलाई 2015 (13:02 IST)
भारत में सगाई से लेकर विदाई तक, जन्म से लेकर मौत तक सभी तरह की रस्मों को कर्मकांड में बांधा गया है। इन कर्मकांड और परंपराओं के पीछे कारण क्या है, यह तो कम ही लोग जानते होंगे। एक ऐसी ही परंपरा है कि किसी भी शुभ कार्य में स्‍त्रियों के लिए सफेद वस्त्र पहनना वर्जित है।

आओ जानते हैं कि किसी मंगल या शुभ कार्य में स्त्रियां सफेद कपड़े क्यों नहीं पहन सकती हैं? हालांकि यह परंपरा शास्त्रोक्त मान्यताओं के बिलकुल विरुद्ध है।

अगले पन्ने पर जानते हैं सफेद रंग का सच...
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हिन्दू परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार स्त्रियों द्वारा सफेद कपड़ों का शुभ कामों में उपयोग नहीं किया जाता। कुछ लोग इसे रूढ़ि मानते हैं तो कुछ इसके पीछे विशेष कारणों का उल्लेख करते हैं। हालांकि यह परंपरा कब से और कैसे शुरू हुई? यह कोई नहीं जानता।

कुछ लोग मानते हैं कि सफेद वस्त्र को हिन्दू विधवा स्त्रियां ही पहनती हैं इसलिए सफेद वस्त्र का मांगलिक कार्यों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। लेकिन शास्त्रों में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा गया है कि मांगलिक कार्यों के दौरान सफेद वस्त्र न पहनें।

हिन्दू विधवा क्यों पहनती है सफेद वस्त्र...

दरअसल, सफेद रंग को रंगों की अनुपस्थिति वाला रंग माना जाता है अर्थात जिसके जीवन में कोई रंग नहीं रहे। संन्यासी भी सफेद वस्त्र धारण करते हैं। जब महिला का पति मर जाता है तो उसके लिए यह सबसे बड़ी घटना होती है। इसका मतलब कि अब उसके जीवन में कोई रंग नहीं रहा।

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शास्त्रों के अनुसार पति की मृत्यु के नौवें दिन उसे दुनियाभर के रंगों को त्यागकर सफेद साड़ी पहननी होती है, वह किसी भी प्रकार के आभूषण एवं श्रृंगार नहीं कर सकती। स्त्री को उसके पति के निधन के कुछ सालों बाद तक केवल सफेद वस्त्र ही पहनने होते हैं और उसके बाद यदि वह रंग बदलना चाहे तो बेहद हल्के रंग के वस्त्र पहन सकती है। हालांकि कोई स्त्री पुनर्विवाह का निर्णय लेती है, तो इसके लिए वह स्त्रतंत्र है।

वेदों में एक विधवा को सभी अधिकार देने एवं दूसरा विवाह करने का अधिकार भी दिया गया है। वेदों में एक कथन शामिल है-

'उदीर्ष्व नार्यभि जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष एहि।
हस्तग्राभस्य दिधिषोस्तवेदं पत्युर्जनित्वमभि सम्बभूथ।'


अर्थात पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा उसकी याद में अपना सारा जीवन व्यतीत कर दे, ऐसा कोई धर्म नहीं कहता। उस स्त्री को पूरा अधिकार है कि वह आगे बढ़कर किसी अन्य पुरुष से विवाह करके अपना जीवन सफल बनाए।

सफेद रंग का मनोवैज्ञानिक प्रभाव...

सफेद साड़ी पहनने से महिला की एक अलग ही पहचान बन जाती है। सभी लोग उसके प्रति संवेदना रखने लगते हैं। इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव के चलते वह सामाजिक सुरक्षा के दायरे में रहती है।
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दूसरी ओर एक विधवा के सफेद वस्त्र पहनने के पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि सफेद रंग आत्मविश्वास और बल प्रदान करता है। वह कठिन से कठिन समय को पार करने में सहायक बनता है। इसके साथ ही सफेद वस्त्र विधवा स्त्री को प्रभु में अपना ध्यान लगाने में मदद करते हैं। सफेद कपड़ा पहनने से मन शांत रहता है।

इसलिए सफेद रंग हर तरह से शुभ माना गया है, लेकिन वक्त के साथ लोगों ने इस रंग का मांगलिक कार्यों में इस्तेमाल बंद कर दिया। हालांकि प्राचीनकाल में सभी तरह के मांगलिक कार्यों में इस रंग के वस्त्रों का उपयोग होता था। पुरोहित वर्ग इसी तरह के वस्त्र पहनकर यज्ञ करते थे।

क्या मांगलिक कार्यों में भी पहने जा सकते हैं सफेद वस्त्र...

सच तो यह है कि सफेद रंग सभी रंगों में अधिक शुभ माना गया है इसीलिए कहते हैं कि लक्ष्मी हमेशा सफेद कपड़ों में निवास करती है। 15-20 वर्षों पहले तक लाल जोड़े में सजी दुल्हन को सफेद ओढ़नी ओढ़ाई जाती थी। इसका यह मतलब कि दुल्हन ससुराल में पहला कदम रखे तो उसके सफेद वस्त्रों में लक्ष्मी का वास हो। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में सफेद ओढ़नी की परंपरा का पालन किया जाता है।

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