नगर पालिका को सयार (ऑक्ट्राय) से होने वाली आय के बदले 1906 में यह प्रयोग किया गया था कि पालिका को एकमुश्त क्षतिपूर्ति राज्य के कोषालय से कर दी जाए। यह प्रयोग अधिक दिनों तक नहीं चला, क्योंकि पालिका की आय सीमित हो गई और क्षतिपूर्ति देने से राजकीय कोषालय पर भी अतिरिक्त आर्थिक भार पड़ा। अंतत: ऑक्ट्राय लेना पुन: प्रारंभ करना पड़ा। 1913 तक तो यही कर पालिका को सर्वाधिक आय देने वाला स्रोत बन गया।
आय के अन्य साधन सीमित थे। राजकीय अनुदान भी अपर्याप्त था अत: आय बढ़ाने के लिए वर्ष 1913-14 से 'हाउस टैक्स' लगाने का प्रस्ताव किया गया। इस व्यवस्था को लागू करने से पूर्व तक नगर के मकानों से दोषपूर्ण तरीके से कर वसूला जाता था। मकानों से प्राप्त किराए की राशि पर प्रति रु. 1/2 आना की दर तय थी। किराया पाने वाले नागरिकों को इस दर से टैक्स देने में आपत्ति भी नहीं थी। जो लोग अपने मकानों में स्वयं रहते थे और जिन्हें किराए से कोई आय नहीं होती थी, उनके मकानों पर अनुमानित किराए की आय निर्धारित की गई और उन पर भी उसी दर से कर लगा-14कर वसूला जाता था। इस दोषपूर्ण कर प्रणाली को समाप्त कर 1913-14 से सरलीकृत हाउस टैक्स लागू किया गया।
अपनी आय बढ़ाने के लिए पालिका ने 1923 से नगर सीमा में स्थित सिनेमाघरों तथा नाटक कंपनियों पर मनोरंजन कर आरोपित किया। नंदलालपुरा का नाटक थिएटर काफी लोकप्रिय था, जहां देश के ख्यातिप्राप्त नाटककर्मी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने आया करते थे। नागरिकों में भी नाटक देखने का बड़ा उत्साह हुआ करता था।
जब नगर पालिका को नगर की सड़कों के रखरखाव का दायित्व सौंपा गया तो नगर की सड़कों पर चलने वाले वाहनों तथा मोटर कारों, मोटरसाइकलों, निजी वाहनों व तांगों पर पालिका ने 1923 से ही टैक्स लगाया, बाद में साइकलों पर भी टैक्स लागू कर दिया गया। उसी वर्ष नगर के सभी क्षेत्रों में 10 वर्ष पूर्व निर्धारित हाउस टैक्स की दरों का पुनर्निर्धारण भी किया गया। अगले ही वर्ष नगर पालिका को निजी मोटर कारों पर टैक्स लगाने से 4000 रु. की तथा हाउस टैक्स पुनर्निर्धारण से 26,500 रु. की अतिरिक्त आय हुई। बाजार में लगने वाली दैनिक दुकानों पर कर लगाने से भी पालिका की आय में वृद्धि हुई।